Thursday, June 4, 2009

गरीब की छोटी गलती भी कुफ्र- वाह रे वाह...


गरीब की छोटी गलती भी कुफ्र- वाह रे वाह...

इन दिनों छत्तीसगढ़ के कई शहरों में सड़क के किनारे अवैध कब्जे हटाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। अच्छा है किसी भी ग़लत काम को शरुआत में ही रोकने की पहल स्वागत योग्य है। लेकिन इसी शहर में कई सालों से बड़े बड़े शापिंग काम्प्लेक्स बन चुके है जिनमे भू-तल की पार्किंग वाली जगह पर भी दुकानें बना दी गई है और उनसे काम्प्लेक्स के मालिक मोटी आमदनी ले रहे है। जब जब इस विषय में कोई बात उठती है तो सम्बंधित अधिकारी और जन प्रतिनिधि बार बार यही कहते पाये जाते हैं कि शहर और राज्य के सभी काम्प्लेक्स कि पार्किंग की जांच की जायेगी। लेकिन कुछ होता हुआ दिखाई नही देता। शायद गलीलियो के टेली स्कोप या कोई अन्य माईक्रो स्कोप की मदद से ही दिखाई दे। गरीबों सड़क किनारेनालियों के ऊपर लगी छोटी छोटी गुमटियां तोडी जा रही है क्योंकि उनके मामले में कोई विरोध नही करेगा। या फ़िर वे अदालत से स्टे भी नही ला सकते। अभी स्टेशन रोड पर कुछ महीने पहले पुराने कब्जे तोडे गए थे । तब कुछ दुकानदारों ने न केवल स्टे हासिल कर लिया था बल्कि निगम के अधिकारी को ग़लत साबित करने की भी कोशिश की थी।
लेकिन वह अधिकारी कुछ दूसरी प्रजाति का है इसलिए उसे घेरने कि कोशिश नाकाम रह गई। यहाँ यह विषय नही है कि कोई एक पक्ष ही सही होगा या दूसरा अनिवार्य रूप से ग़लत। लेकिन अफ़सोस की बात यही है कि गरीब कि छोटी सी गलती पर भी इतनी सख्ती से प्रतिक्रिया की जाती है, जैसे कोई कुफ्र हो गया हो।
यह किसी एक शहर की बात लगती है जरुर, लेकिन मुझे पत्रकार होने के नाते यह पूरा विश्वास है कि ऐसा ही कमोबेश हर दूसरे शहर में होता होगा।

अपने ही एक कवि मित्र की पंक्तिया याद आती है--
कोई तरस रहा उजियारे को
कोई सूरज दाबे सोता है ,
देख ले भगवन अब के दौर में
कैसा अनर्थ यह होता है

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Tuesday, June 2, 2009

मतदाता को क्या अधिकार है ?

मतदाता को क्या अधिकार है
कल एक पूर्व मंत्री से चर्चा हो रही थी, जो अपने चालीस वर्षों के कार्यकाल में बेहद इमानदार मने जाते रहे है। जब उनसे नेताओं के भ्रष्टाचार पर बात होने लगी तो कहने लगे- अधिसंख्य मतदाताओं को क्या अधिकार है कि वे नेताओं के भ्रष्टाचार पर विरोध के स्वर उठाएं, क्योंकि उन्होंने ख़ुद दारु और मुर्गा खाकर अपना वोट बेचा है। उनकी तकलीफ वाकई जायज थी। इन दिनों छत्तीसगढ़ में भी पुराने को तोड़ना और उसकी जगह पर फ़िर नया कुछ बनाना चल रहा है। शहर को सुंदर बनाने का सांकल राज्य सरकार ने लिया है। नगर निगम ने भी रायपुर को महानगर बनाने का संकल्प ले लिया है। जब इतनी साड़ी संस्थायें एक साथ संकल्प ले चुकी है तो शायद छः महीनो में या एक साल में रायपुर की तस्वीर बदल ही जायेगी ऐसा प्रतीत होता है। अगर नही बदली तो फ़िर कुछ लोगों की तस्वीर बदल जायेगी। कम से कम उनकी बदलली हुई तस्वीर देखकर ही यह अंदाजा लगाना होगा कि शायद रायपुर की तस्वीर कि उन्ही के अनुसार बदलेगी।
कई बार फिराक गोरखपुरी का एक शेर याद आता है जो गुस्से के बीच बड़ी तसल्ली देता है
इन खंडहरों में बाकी हैं कुछ टूटे हुए से दीये
इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
आज इतना ही

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