Saturday, January 31, 2009

पुलिस-दोस्त की नई योजना

पुलिस-दोस्त की नई योजना
यह बात अक्सर कही जाती है कि वकील और पुलिस की न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी. लेकिन छत्तीसगढ़ में यहाँ के पुलिस विभाग के मुखिया एक नही कई बार यह कह चुके हैं कि राज्य में अपराध को तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब पुलिस, जनता को अपना मित्र माने. आखिरकार पुलिस महानिदेशक की इस योजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुर हो गई है. रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक ने आम लोगों को पुलिस मित्र बनाने के लिए उनसे अपना बायोडाटा जमा करने की अपील की है. यह पहल निश्चित रूप से अच्छी है क्योंकि इससे राजधानी में अपराध नियंत्रण में काफी हद तक मदद तो अवश्य मिलेगी. पुलिस को ज्यातर अपराध के मामलों में घटना स्थल से समय पर सूचना नही मिल पाती , क्योंकि आम लोग यही सोच लेते है कि पुलिस को बताने का मतलब है अपने लिए मुसीबत मोल लेना. पुलिस को कुछ मदद की तो बेवजह पुलिस थाने के चक्कर काटते रहने के सिवा और क्या हासिल होगा ? यही एक नकारात्मक सोच आम जनता को पुलिस के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाने से रोक देती है. कुछ साल पहले भी यही योजना आरंभ हुई थी, लेकिन तब इसे जनता का कोई सहयोग नही मिलने के कारण यह फाइल में ही दफ्न हो गई थी. अब राज्य की पुलिस अपने प्रति लोगों की इसी नकारत्मक सोच को बदलने के लिए यह अभिनव योजना शुरू करने जा रही है. इसमे शामिल होने वाले लोगों को एक पहचान पत्र दिया जाएगा. इसके आधार पर उनके नाम भी थानों में लिखे रहेंगे, ताकि अगर उनके मोहल्ले में कोई आपराधिक घटना हुई, तो सम्बंधित थाने की पुलिस अपने मित्र- व्यक्ति से आरंभिक जानकारी ले सकती है. यह पहल वास्तव में पुलिस क छवि को भी सुधारने में मददगार होगी. देखना यह है कि इस योजना के लागू होने से अपराध नियंत्रण में पुलिस को कितनी सफलता मिलती है ?
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Wednesday, January 28, 2009

इंदिरा बैंक घोटाला- नीयत में खोट

इंदिरा बैंक घोटाला- नीयत में खोट

किसी भी बैंक घोटाले में जो लाखों या करोडों रुपये लूट लिए जाते हैं, या बैंक के अधिकारी-कर्मचारी ही रुपये गबन कर लेते हैं, उनमे अक्सर यह देखा जाता है की जांच की कार्रवाई इतनी लम्बी हो जाती है की बैंक के खातेदारों को मुआवजा मिलने में भी देर हो जाती है। बड़े राष्ट्री स्टार के बैंकों में यदि ऐसा होता है, तो उनके तंत्र और जांच प्रक्रिया में फैलाव होने का कारण समझा जा सकता है। लेकिन यदि स्थानीय स्तर के छोटे और सहकारी बैंकों में भी दो- दो साल तक गडबडी के आरोपी पकडे नहीं जाएँ, तो फिर जांच पर ही सवाल उठाना स्वाभाविक है। रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक में भी कुछ ऐसी ही स्थिति नजर आती है. तसल्ली की बात फिलहाल यही है की बैंक की अध्यक्ष और दो वर्ष पूर हुए घोटाले की एक प्रमुख आरोपी को भी आखिरकार पकड़ लिया गया है. इस घोटाले के पांच अन्य आरोपी पहले ही पकडे जा चुके हैं, जिनमे बैंक संचालक मंडल के कुछ सदस्य, बैंक मैनेजर और लेखापाल शामिल हैं. अब यह उम्मीद की जा सकती है की बैंक के सैकडों निर्दोष खातेदारों का जमा पैसा जल्द से जल्द उन्हें मिल सकेगा. राज्य सरकार ने पांच से दस हजार तक जमा राशि वालों का भुगतान कर भी दिया है, किन्तु बड़ी रकम वाले खातेदारों का भुगतान अभी बाकी है. इस बात से अलग पुलिस की प्रक्रिया और आरोपियों की गिरफ्तारी में भी एक आश्चर्यजनक लेकिन सत्य बात यह है कि बैंक की अध्यक्ष को जैसे ही गिरफ्तार किया गया सैकडों अन्य मामलो के ख़ास आरोपियों की तरह वे भी बीमार हो गयी, और उन्हें भी जेल भेजने की बजाय अस्पताल भेज दिया गया. ऐसा भारत के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हुआ है. लाख तक एक सवाल तो यही है की ऐसा आम अआरोपियों के साथ क्यों नहीं होता? क्या उन्हें जेल जाने से पहले की कुछ ख़ास बीमारियाँ नहीं हो सकती या ऐसी बीमारियाँ आम आरोपियों

के लिए बनी ही नहीं हैं? जेल जाने से पहले बीमार पड़ने की स्थिति पर पुलिस की जांच हो या न हो, लेकिन इस पर एक शोध तो अवश्य ही होना चाहिए. कितनी विचित्र किन्तु सत्य बात है की जो लोग हजारों-लाखों लोगों के खून-पसीने की कमाई को लूटते समय आह तक नहीं करते, तब उनकी सारी संवेदनाएं तक मर जाती हैं, वही लोग पकडे जाने पर तुंरत बीमार पड़ जाते हैं. जो भी हो, इस घोटाले के शिकार लोगों को उनका डूबा हुआ पैसा जितनी जल्दी मिल जाए, उतना ही बेहतर होगा. साथ साथ दोषियों को सजा मिलने की व्यवस्था भी जल्द से जल्द होनी चाहिए.
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Tuesday, January 27, 2009

कांग्रेस में निष्कासन की सख्ती

कांग्रेस में निष्कासन की सख्ती

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पिछले दिनों अनुशासन का डंडा इस तरह से चला कि कई जमीनी कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी इसके शिकार हो गए. इनमे एक पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह का नाम भी शामिल है. उनके साथ-साथ जोगी गुट के अन्य कई कार्यकर्त्ता भी निष्कासित लोगों में हैं. इस करवाई से यह तो स्पष्ट हो गया कि अभी भी प्रदेश प्रभारी जोगी गुट के बगावती कार्यकर्ताओं पर सख्ती करने में पीछे नहीं हैं. लोक सभा चुनाव के पहले पार्टी की लगाम कसने का यह उपक्रम किसी दूरगामी योजना के तहत उठाया गया कदम दिखाई देता है. इससे पार्टी हाईकमान संभवतः यह भी संकेत करना चाहता है की अब यदि कोई दूसरा नेता या पदाधिकारी बगावत के विषय में फिलहाल न सोचे तो बेहतर है, वर्ना उसका भी यही हश्र होगा. चुनाव के बाद जो फेरबदल हुए उनमे जोगी समर्थक योगेश तिवारी को नेता प्रतिपक्ष के चयन हेतु प्रदेश प्रभारी नारायण सामी के आगमन के समय प्रदर्शन करने के नाम पर हटा दिया गया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू की कुर्सी अभी तक सुरक्षित है. हो सकता है, इसके पीछे भी पार्टी की कोई नीति होगी. मगर इस तरह से फैसले से यह तो तय है की अभी जोगी गुट की स्थिति पहले की तुलना में कुछ कमजोर अवश्य हुई है. वैसे तो धमेंद्र साहू को भी जोगी गुट का समर्थक माना जाता है, परन्तु उनकी कुर्सी बचाकर पार्टी हाईकमान ने यह भी जताने की कोशिश की है कि किसी भी नेता को केवल हार-जीत के अनुसार हटाने की नीति नहीं अपनाई गई है. बहरहाल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को इस समय आक्सीजन की जरुरत है और इसी के लिए दिल्ली में बैठे नेता तरह -तरह के प्रयास कर रहे हैं. यदि इस सख्ती से लोकसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थितिमें सुधर जाती है, तब तो कोई विरोध का स्वर नहीं उठेगा. लेकिन यदि अपेक्षित परिणाम नहीं आए तो एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी की हवा तेज हो सकती है.
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Sunday, January 25, 2009

लखीराम : एक गौरवशाली अध्याय पर विराम

लखीराम : एक गौरवशाली अध्याय पर विराम
छत्तीसगढ़ में भाजपा के पितामह कहे जाने वाले लखीराम अग्रवाल के दुखद अवसान से प्रदेश में राजनीति के एक गौरवशाली अध्याय पर पूर्ण विराम लग गया है. जब प्रदेश में भाजपा का आगाज़ हुआ था, तब से लेकर आज पर्यंत छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थापना और उसकी प्रगति के हर अहम पड़ाव पर लखीराम के परिश्रम की छाप देखी जा सकती है. 1932 में खरसिया में जन्मे लखीराम ने छात्र जीवन से ही राजनीति और समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर अपने सारे कार्य किये. इक्कीस वर्ष की आयु में नगर पालिका के पार्षद पद का चुनाव जीतकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. बाद में उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को छोड़कर केवल पार्टी को सिंचित करने पर ध्यान कर दिया. आपातकाल में जब जनसंघ के अधिकांश बड़े नेता जेल में बंद किये जा रहे थे, तब लखीराम भी उनके साथ थे. लेकिन इसके अगले पड़ाव में लखीराम ने अपनी सांगठनिक क्षमता का परिचय इस तरह से दिया कि छात्तिस्गाह और मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार सफलता के सोपान तय करती गई. आज यदि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा दोबारा सत्ता में आ सकी है, तो इसके पीछे लखीराम जैसे समर्पित कार्यकर्त्ता का ही हाथ रहा. उन्होंने पार्टी की जो बुनियाद राखी, वह इतनी मजबूत है, कि आगे भी भाजपा की सफलता उत्तरोत्त्तर बढती ही जायेगी- इसमें किसी को संदेह नहीं होगा. लखीराम जैसे नेता और संगठन के कार्यकर्त्ता, किसी भी पार्टी जी जान होते हैं, क्योंकि इनमे सभी को जोड़कर रखने की अद्भुत शक्ति होती है. लखीराम ने यह विरासत कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेपथ्य में रहकर काम करने वाले पदाधिकारी से सीखी थी. आज उनके शरीर रूप में हमारे साथ नहीं रहने से एक शून्य तो अवश्य पैदा हुआ है, किन्तु उनके कार्य और योगदान निश्चित रूप से राजनीति में मर्यादा और समर्पण का पाठ हर नए कार्यकर्त्ता को पढाते रहेंगे, चाहे वह किसी भी दल का हो.
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Saturday, January 24, 2009

शिक्षा के प्रति राज्यपाल की चिंता

शिक्षा के प्रति राज्यपाल की चिंता

छत्तीसगढ़ में शिक्षा के प्रसार पर राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से चर्चा करते हुए राज्यपाल के यह कहकर वाकई अपनी चिंता जतायी है कि प्रदेश में खुलने वाले नए विश्वविद्यालयों को शिक्षा की दुकान बनने से रोका जाना जरुरी है. उनकी सबसे बड़ी चिंता इसी बात को लेकर रही कि राज्य में बहुत से निजी विश्वविद्याला खुल तो रहे हैं, लेकिन उनके पास अपने भवन, पुस्तकालय या अन्य बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर हैं. ऐसे में वहां पढने वाले विद्यार्थियों कि शिक्षा किस तरह से हो पायेगी- यह वास्तव में एक अहम सवाल है. दरअसल राज्य में पहले भी निजी विश्वविद्यालयों की भरमार रही है. पूर्ववर्ती कांग्रेस सर्कार के कार्यकाल में तो हालत यह थी कि राज्य में एक समय 134 निजी विश्वविद्यालय पंजीकृत हो चुके थे. हलाकि इनमे से अधिकांश के पास केवल तीन या चार कमरे के ऑफिस ही थे और कक्षा के नाम पर केवल दो तीन कमरे शेड लगाकर बना दिए जाते थे. तब सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के बाद यह अहम फैसला दिया था की राज्य के सभी निजी विश्वविद्यालयों को प्रतिबंधित किया जाता है. सवाल यह है की एक निजीकरण के दौर में जब हर दूसरी सेवा पर निजी क्षेत्र के उदामियों का कब्जा हो रहा है, तो शिक्षा इससे कहाँ तक अछूती रह पाती ? अब तो प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेज भी इतने हो गए है कि पी.ई.टी. की परीक्षा लेना भी औचित्यहीन हो गया है. लेकिन सरकार पी.ई.टी. की परीक्षा लेकर हजारों रुपये इकठ्ठा करने में ज्यादा रूचि लेती है, भले उस परीक्षा के बाद सौ में दस नंबर पाने वाले विद्यार्थी को भी इंजिनीयरिंग में प्रवेश क्यों न देना पड़े. स्थिति तो यहाँ तक है पिछले साल ही राज्य के तीन से चार कॉलेज में सीट पूरी नहीं भर पायी, तो उनके प्रबंधन को बारहवी पास विद्यार्थी खोजने पड़े, ताकि कॉलेज का खर्च तो निकल सके. चाहे कोई भी संस्थान हो, जब तक शिक्षा में संस्कार और ज्ञान को प्रमुखता नहीं दी जायेगी, तब तक बाहर से कितना भी ताम- झाम कर लिया जाये, देर सबेर विद्यार्थी वहां से मुंह मोड़ ही लेगा. इस दिशा में राज्यपाल की चिंता बहुत ही सामयिक और जायज़ है, और इस पर सभी सम्बंधित विशेषज्ञों को विचार करना होगा.

Thursday, January 22, 2009

छ.ग. को झुग्गीमुक्त बनाने की पहल


छ.ग. को झुग्गीमुक्त बनाने की पहल

केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के चार प्रमुख शहरों को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए एक बड़ी योजना मंजूर की है. राज्य के आवास मंत्री ने हाल ही में दिल्ली में आवास मंत्रियों के सम्मलेन में यह मांग राखी थी की छत्तीसगढ़ के दस शहरों - राजनांदगांव, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगांव, रतनपुर, नैला- जांजगीर, कोंडागांव, धमतरी, अंबिकापुर और सारंगढ़ में झुग्गी उन्मूलन योजना शुरू करने की मांग की थी. लेकिन केंद्र सरकार ने फिलहाल इनमे से चार नगरों- राजनांदगांव, कवर्धा, खैरागढ़, और डोंगरगांव को ही इस योजना के लिए चुना है. इस योजना के तहत इन शहरों में 48 करोड़ रुपये की लागत से करीब तीन हज़ार मकान झुग्गी में रहने वाले परिवारों के लिए बनाये जायेंगे. इस समय छत्तीसगढ़ के तेरह शहरों में केंद्र की झुग्गी उन्मूलन योजना चल रही है. इसके अंतर्गत १७६ करोड़ रुपये की लागत से लगभग पंद्रह हज़ार मकानों का निर्माण झुग्गी में रहने वाले परिवारों के लिए किया जा रहा है. इस तरह की सभी योजनाओं का उद्देश्य निश्चित रूप से बहुत अच्छा है. लेकिन सवाल यही है कि झुग्गी में रहने वाले वर्तमान परिवारों को मकान देने लिए जो भी योजना चलेगी उससे सभी झुग्गी परिवारों को कम से कम समय में लाभ शायद ही मिल पाए. कोई भी योजना लक्ष्य से बहुत छोटे आकर में ही शुरू की काटी है और जब तक एक हिस्सा लाभ पता है, तब तक लाखो और झुग्गी बनकर तैयार हो जाती हैं. कई बार तो यह भी देखा जाता है कि जैसे ही मालूम हुआ कि कही कोई नयी योजना आने वाली है, रातों-रात कुछ मोहल्ला- छाप नेता गरीब परिवारों को नजूल कि जमें पर कब्जा करने के लिए कह देते है. फिर उन्हें झुग्गी उन्मूलन जैसी योजना का लाभ दिलाने के नाम पर अपनी राजनीती शुरू कर देते है. जब तक ऐसी छोटी प्रवृतियाँ जिन्दा रहेंगी, तब तक कोई भी कल्याणकारी योजना अपने सार्थक रूप में न तो साकार हो पायेगी, और न ही उसका लाभ सही अह्क्दारों को मिल पायेगा. लेकिन देश में ऐसी निगरानी की व्यवस्था क्या कभी बन सकेगी- यह कहना अभी मुश्किल है.

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Wednesday, January 21, 2009

पोलीथिन के राष्ट्रीय-ध्वज के प्रति चिंता

पोलीथिन के राष्ट्रीय-ध्वज के प्रति चिंता
छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस ने पोलीथिन से बने राष्ट्रीय ध्वज के प्रति एक सार्थक चिंता जतायी है। इस पर विचार करना जरुरी है. युवक कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी का कहना है कि पोलीथिन के राष्ट्रीय ध्वज को बड़ी संख्या में गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस के मौके पर बांटा और बेचा जाता है. लेकिन यह भी देखा जाता है कि समारोह ख़त्म होते ही बहुत से छोटे बच्चे या तो राष्ट्रीय ध्वज को मैदान में ही फेंक देते है, या उसे फाड़ देते है. चूँकि हर एक स्कूली बच्चे या स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चे को उनके पालक और शिक्षक यह नहीं सिखा पाते कि राष्ट्रीय ध्वज को किस तरह से रखा जाना है, इसलिए छोटे बच्चे इसे ठीक उसी तरह इस्तेमाल कर रहे है, जैसा वे स्वयं जानते है. यह वास्तव में एक गंभीर विषय है कि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा कैसे की जाए. अगर जागरूक लोग स्वयं इस दिशा में नहीं सोचेंगे, तो कौन आगे आएगा ? इस सम्बन्ध में यह सुझाव भी दिया जा सकता है कि झंडा बेचने वाले लोगों को प्रारंभिक रूप से सभी निर्देश बता दिए जाएँ. इसके अलावा किन किन परिस्थिति में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान संविधान के अनुसार माना जाता है- इस बारे में भी लोगों को जागरूक किया जाना जरुरी है कि राष्ट्रीय ध्वज को केवल एक वास्तु न समझा जाए, बल्कि इसे राष्ट्रीय प्रतीक की तरह ही स्वीकार किया जाए. तभी इसके अपमान की घटनाओं को रोका जा सकेगा. यदि अभी से स्कूलों और सार्वजानिक स्थानों पर इस विषय में लोगों को ख़ास ख़ास बातें बताई जाएँ तो इसका प्रभाव आने वाले गणतंत्र दिवस समारोह तक देखा भी जा सकता है. इसके साथ- साथ सार्वजनिक स्थानों पर यह सूचना भी लिखी जा सकती है की ध्वज के अपमान के मामले में क्या क्या कार्रवाई की जाएगी. यह वाकई एक तारीफ के लायक पहल है कि आज के युवा राजनीतिकों में से ही किसी ने यह सुझाव दिया है. अगर युवा स्वयं इस विषय को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे तो निश्चित रूप से एक सार्थक परिणाम समाने आएगा.----

Tuesday, January 20, 2009

छ.ग. में नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी

छ.ग. में नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी

केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपने रायपुर प्रवास के दौरान यह दो टूक शब्दों में कह दिया है कि अब नक्सलियों के ह खिलाफ निर्णायक संघर्ष कि तैयारी शुरू कर दी जाए. उनका यह आश्वासन भी राज्य सरकार को मिल गया है कि केंद्र इस लड़ाई में हर संभव मदद देने के लिए सदैव आगे आएगा. केंद्र कि हरी झंडी मिल जाने के बाद अब राज्य सरकार कि यह जिम्मेदारी ह है कि वह नक्सली समस्या के मोर्चे पर कठोर कदम उठाये. अभी तक राज्य सरकार पर यह दबाव भी रहता था कि उसके किसी भी सख्त कदम पर मानवाधिकार संगठन आवाज़ उठाने लगते थे. सलवा जुडूम को लेकर भी राज्य सरकार कि भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस ने भी चिदंबरम के आगमन पर राज्य सरकार के खिलाफ एक ज्ञापन केन्द्रीय मंत्री को दिया, किन्तु चिदंबरम ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इस दौरे में वे नक्सली समस्या को समझने के लिए ही आये है और किसी तरह कि राजनीती में नहीं उलझना चाहते. उन्होंने स्वयं इस बात को मन है कि इस समय नक्सली समस्या पूरे देश कि आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है. चिदंबरम की इन बातों से राज्य सरकार को अपना काम ठीक तरह से करने की एक अर्थ में छुट मिल गयी है. वर्ना, हाल ही में लोक सभा में चिदंबरम ने सलवा जुडूम पर अपने बयान में यह कह दिया था की सलवा जुडूम की अनिवार्यता पर वे कुछ नहीं बोलना चाहते, जबकि उनके पूर्ववर्ती गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने सलवा जुडूम की खुले तौर पर तारीफ की थी. अब राज्य के दौरे पर आकार चिदंबरम ने अपनी जानकारी को खुद ही दुरुस्त करना चाह. उनके मुताबिक दिल्ली में कुछ एन.जी.ओ. ने उन्हें यह बताया था कि सलवा जुडूम को एस.पी.ओ. चलाते हैं. चिदंबरम के राज्य के पहले दौरे में आने से यहाँ कि सरकार ने भी सुकून कि सांस ली होगी. उनके सकारत्मक रवैये से यह स्पष्ट हो गया है कि अब राज्य में नक्सली मोर्चे पर जो भी निर्णायक कार्रवाई होगी, उसे केंद्र का समर्थन हासिल रहेगा. मुख्यमंत्री रमण सिंह के लिए निश्चित रूप से यह भी एक बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक जीत कही जा सकती है, कि सलवा जुडूम को जारी रखने के सवाल पर चिदंबरम ने इसे राज्य सरकार का विषय कहकर स्वयं को अलग कर लिया. ----

Saturday, January 17, 2009

छ.ग. कांग्रेस में आत्मचिंतन का दौर

छ.ग. कांग्रेस में आत्मचिंतन का दौर

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद अभी तक राज्य की कांग्रेस इकाई सदमे से बाहर नही निकल पाई है. प्रदेश कांग्रेस प्रभारी नारायण सामी चुनाव परिणाम निकलने के बाद से अब तक जितनी बार भी राज्य के दौरे पर आए हैं, उन्हें वरिष्ठ नेताओं ने शिकायतों का पुलिंदा थमाया है. ज्यादातर नेताओं की शिकायत यही रही है कि इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टी को भाजपा के नेताओं से हार नही मिली, बल्कि, कांग्रेस के ही नेताओं ने अपने उम्मीदवारों को हराया है. रायपुर क्षेत्र के चार में से एक कांग्रेस प्रत्याशी संतोष अग्रवाल ने तो सामी की बैठक में आक्रामक ढंग से अपनी नाराज़गी जताई. इसी तरह कांकेर से पार्टी उम्मीदवार गंगा पोटाई ने सबके सामने यह कहा कि उनके ख़िलाफ़ मनोज मंडावी को पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने ही जान-बूझकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा कराया था, ताकि आदिवासी वोट काटे जा सकें. कुछ अन्य नेताओं ने भी गुटबाजी को अपनी पराजय के कारण के रूप में बताया. इन सब विश्लेषणों को सुनकर नारायण सामी ने यह संकेत दिए हैं कि प्रदेश की नई कार्यकारिणी में जल्द ही कुछ परिवर्तन किए जायेंगे. हाल ही में योगेश तिवारी को प्रदेश युवक कांग्रेस के पद से अलग करते हुए आदिवासी कार्यकर्त्ता राजकुमारी दीवान को उनके स्थान पर बिठाया गया है. यह फ़ैसला भी जोगी- विरोधियों की पैरवी का एक हिस्सा मन जा सकता है. पहले विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता पद के लिए भी अजीत जोगी स्वयं को आगे मान रहे थे. लेकिन ऐन वक्त पर रविन्द्र चौबे ने ख़ुद को दावेदार बताकर उनके गणित पर पानी फेर दिया. सोनिया गाँधी ने भी चौबे को आगे बढाकर राज्य की राजनीति में अजीत जोगी की भूमिका को सीमित कर दिया. जिस तरह से प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति चल रही है, उसमे यदि कुछ और बड़े नाम हाशिये पर चले जाएँ या धकेल दिए जाएँ तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए. ऐसे माहौल में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कांग्रेस अपनी भीतरी लडाई से कैसे उबरती है.
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Friday, January 16, 2009

स्कूली बच्चों को राज्यपाल का सुझाव


स्कूली बच्चों को राज्यपाल का सुझाव
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने यहां के स्कूली बच्चों को पेट्रोल की बचत और यातायात समस्या के समाधान की दिशा में एक उपयोगी सुझाव दिया है. उनका कहना है कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए अपने निजी वाहन या कार की बजाय, साईकल का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे न केवल पेट्रोलियम पदार्थों की बचत होगी, बल्कि यातायात की समस्या भी हल होगी और बच्चो की दुर्घटना के मामले भी कम होंगे. राज्यपाल का यह सुझाव ऐसे समय में आया है, जब आर्थिक मंदी के कारण पेट्रोल और डीजल के दाम पर भी असर पड़ रहा है. इसके साथ- साथ स्कूल जाने वाले बहुत से बच्चे छोटी उम्र में ही बड़ी बड़ी गाडी चलाने लगे हैं, जिससे सड़क दुर्घटना की आशंका भी बढ़ने लगी है. यह प्रायः हर बड़े शहर में देखा जा रहा है की जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए गाडी खरीदने में समर्थ हैं, वे यातायात की समस्या और दुर्घटना का विचार किये बिना अपने बच्चों को गाडी से ही स्कूल भेजने लगे हैं. इससे मध्यम और गरीब वर्ग के अन्य विद्यार्थी हें भावना के शिकार भी हो जाए हैं. अब, जबकि देश भर में पेट्रोलियम पदार्थो का संकट अक्सर गहराने लगता है और गाड़ियों की बढती संख्या के कारण सड़क दुर्घटनाओं की आशंका भी अधिक हो गई है, ऐसे में राज्यपाल का सुझाव हर लिहाज से काबिले-गौर है. उन्होंने इस सुझाव को अमलीजामा पहनाने के लिए विभिन्न स्कूल के प्राचार्यों से भी आग्रह किया हाकी वे अपने यहाँ पढने वाले बच्चों से इस दिशा में पहल करने को कहें. चूँकि स्कूल पढने वाले ज्यादातर बच्चे नीतिगत बातों में अपने शिक्षक या प्राचार्य की बात ही मानते हैं. इसलिए राज्यपाल का शिक्षको और प्राचार्यों से आग्रह करना बिलकुल सही है. अब यह देखना बाकी रहेगा की स्कूल के शिक्षक और प्राचार्य राज्यपाल के सुझाव प् कितनी गंभीरतापूर्वक अमल करते है ?
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Thursday, January 15, 2009

जुन्ना जोगी के होईस वापसी

जुन्ना जोगी के होईस वापसी
छत्तीसगढ़ के पहिली मुख्यमंत्री अजीत जोगी पाछू छे महिना ले जर-बोखार के सेती अपन काम बूटा ल कमती कर दे रिहिन. अतकेच नई, बल्किन उनला दिल्ली के अस्पताल म भरती घलो रहे बर पडिस. जईसने जोगी के तबियत बने होईस, उनखर रईपुर आए ले एक घांव फेर, इहाँ के राजनीति माँ लहर उठाना सुरु हो गे हे. जोगी के बयान आए हे कि दंतेवाडा जिला के सिंगारम गाँव म पुलिस औ नक्सली मन के बीच म जौन मुठभेड़ के बात कहे जात हे, ओमा कतको किसम के सक हे, किस सिरतोन म अईसे होईस होही कि नई. जोगी के सवाल एहू हे कि मुठभेड़ के नांव ले के सिंगारम के अदिवासीच मन ल मार दे गे होही, तौ एखर जांच होना चाही. अपन अईसन बयान ले जोगी ह भाजपा ल बता दे हवें कि राज्य म उनखर वापसी हो गे हे, अउ अब कोनो किसम के उंच-नीच होही, तौ सरकार ल जवाब देच बर पड़ही.
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ताराचंद का विद्रोही अभियान

ताराचंद का विद्रोही अभियान

भाजपा ने हाल ही में अपने वरिष्ठ नेता और सांसद ताराचंद साहू को पार्टी- विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया है। अब ताराचंद अपनी राजनितिक साख को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के बैनर पर राज्य-व्यापी यात्रा निकलने की तैयारी कर रहे हैं। आखिर इस प्रतिद्वंदिता का क्या अर्थ है ? राजनीति में ऐसा समझा जाता है कि, जो अपनी गलती या पराजय मान ले तो उसकी छवि जनता के बीच खराब हो जायेगी. यह मान्यता गलत है, या सही , यह तो तर्क और बहस का विषय है. लेकिन छत्तीसगढ़ में या इस समय देश के अन्य राज्यों में पद पाने के नाम पर जो कुछ चल रहा है, उससे स्वस्थ राजनीति की उम्मीद तो नहीं की जा सकती. जिसकी लाठी में दम होगा वह अपने समय में खुद को सही साबित करवा लेगा. दर असल, ताराचंद साहू की लड़ाई प्रेमप्रकाश पाण्डेय से थी- यह जग-जाहिर है. भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में यह आरोप बड़े नेताओं ने माल लिया कि प्रेमप्रकाश पाण्डेय को हराने में ताराचंद साहू कि भूमिका निर्णायक थी. कौन सही है और कौन गलत, यह फैसला देना किसी एक व्यक्ति के बस की बात भी नहीं है, क्योंकि राजनीति में एक साथ बहुत से बिंदु काम कर रहे होते हैं. जब तक उन सभी बिन्दुओ पर गौर नहीं किया जाये, तब तक यह कहना उचित नहीं होता की किसने गलत किया. बहरहाल, अब भाजपा के लिए असंतोष की एक नयी पौध तैयार हो गयी है, जिससे पार्टी को लोकसभा चुनाव के समय भी निबटना पड़ेगा. आज एक बड़ा नेता पार्टी से दूर हा है, कल कुछ और नेता भी इसी रस्ते पर चले जाएँ, तो क्या आश्चर्य? राजनीति में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गयी है की जिसको ही टिकट या पद नहीं मिलता वह बागी हो जाता है, या बागी होने की धमकी देता है. इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने की जरुरत ज्यादा है, बनिस्बत इस बात के किसी एक नेता को निशाना बानकर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाये. इस बात को ऐसा न समझा जाये कि किसी एक व्यक्ति विशेष का समर्थन किया जा रहा है. व्यक्ति तो राजनीति की धारा में बहुत छोटा कारण है. अगर इस बात की ओर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह एक असाध्य रोग बनकर उभर सकता है. और आखिर में इसका नुकसान राज्य और देश को ही होना है.
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Wednesday, January 14, 2009

मुख्यमंत्री के जनदरसन

मुख्यमंत्री के जनदरसन

दूसर घांव अपन बनाए के बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह ह फेर उही जन दरसन कार्यक्रम ल सुरु करईया हे जौन पहिली घलो चलत रिहिस. एखर ले दुरिहा- दुरिहा के रहईया मन के कतको काम ह अईसने बन जाथे. अईसन कार्यक्रम के फायदा एहू हे कि जौन मनखे मन दरखास ला धरे- धरे सरकारी आपिस म किंजरत रहिथें, औ जेमन के काम बाबू मन के देरी के सेती नई बने, तहु मन मुख्यमंत्री के आघू म अपन पीरा ल बता के काम ल बनाए के बेवस्था कर लेथें. एही पाए के जन दरसन कार्यक्रम ल रखना जरुरी हे. पाछू घांव ले सीख के ए दरी मुख्यमंत्री ह पहिलीच ले अधिकारी मन ल कहि दे हवे कि गंवई- गाँव के मनखे मन के कोनो काम ह रुकना नई चाही. काबर कि एखरे ले सरकार के परभाव बने असन परही. ----

रायपुर में अतिक्रमण विरोधी अभियान

रायपुर में अतिक्रमण विरोधी अभियान

राजधानी बनने के बाद से रायपुर को सुन्दर रूप देने के लिए आये दिन कोई न कोई प्रयास होते रहते हैं। ज्यादातर तो यही देखा जाता है कि आमापारा, फाफाडीह, तेलीबांधा या अन्य व्यस्त इलाके में अतिक्रमण विरोधी अभियान जैसे ही पूरा होता है, लोग फिर से अपने कब्जे तान देते हैं, जैसे उन्हें नियन कायदों का कोई डर ही न हो. रायपुर नगर निगम के काम का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसी बात में खर्च हो जाता ही वह सड़क से अवैध कब्जों को हटाये और थोड़े दिनों बाद फिर से उसी स्थान पर कब्जे हटाने का काम करे. क्योंकि अभियान ख़त्म होने के कुछ ही घंटो बाद कब्जे फिर से दिखाई देने लगते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर रायपुर के लोगों को यह अपना शहर कब लगेगा ? सब्जी बाजारों को सड़क से हटाने के लिए एक दिन सामान जब्ती की कार्रवाई होती है, लेकिन दूसरे दिन से फिर वही स्थिति देखी जा सकती है. नगर निगम के अब तक के सारे अधिकारी इस प्रयास को करते-करते थक गए कि रायपुर के नागरिकों को कैसे बताया जाये कि अवैध कब्जे से अंत में दूसरे नागरिकों को ही तकलीफ होती है. शहर की गन्दगी को बढाने में यहाँ के अवैध कब्जों का बहुत बड़ा योगदान है. एक तरफ नगर निगम सडको को चौडा करने के काम में जुटा हुआ है और दूसरी ओर लोग हैं कि चौडी हो चुकी सड़क पर कब्जा करने में मिनट भर की भी देर नहीं लगाते. ऐसे में आखिर रायपुर के जिस विकास कि हम सब कल्पना करते हैं, यह कैसे साकार होगी ? यह सवाल रायपुर के हर एक नागरिक से पूछा जाना चाहिए.----

Monday, January 12, 2009

अन्तरिक्ष विज्ञानी डॉ नायर का छ.ग. आना

अन्तरिक्ष विज्ञानी डॉ नायर का छ.ग. आना

छत्तीसगढ़ की उर्वर धरती पर हमेशा से ही देश के एक से बढ़कर एक सपूत आते रहे हैं. लेकिन हाल के वर्षों में जो लोग यहाँ आये हैं, उनमे अन्तरिक्ष विज्ञानी डॉ माधवन नायर का आना युवाओं सहित पूरे प्रदेश के लिए एक प्रेरणा का अवसर माना जा सकता है. पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के दीक्षांत समारोह में आकर डॉ नायर ने युवाओं को यह बता दिया की देश की तरक्की में युवा समाज की कितनी बड़ी भूमिका है. भारत से विदेशों में जाने वाले युवाओं पर डॉ नायर खास तौर पर नाराज़ भी होते है. उनका मानना है की जो युवा केवल पैसे के लालच में विदेश चले जाते हैं, उनकी प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए. आखिर देश ने उनको काबिल बनाने में कितना सारा संसाधन खर्च किया है. तो फिर वे विदेश में बसकर देश के इस निवेश का ऋण कैसे चुका सकते हैं ? डॉ नायर की स्वयं की उपलब्धि भी युवाओं के लिए न केवल एक प्रेरणा की बात है, बल्कि एक शोध का विषय है कि एक व्यक्ति कैसे अपनी लगन से विज्ञानं की सबसे बड़ी संस्था के मुखिया के पद तक पहुँच सकता है और कैसे उसे हर विश्वविद्यालय अपने- अपने यहाँ बुलाकर विज्ञान की सबसे बड़ी उपाधि - डाक्टर ऑफ़ साईंस- से सम्मानित करने को बेताब हैं ? एक अन्तरिक्ष विज्ञानी के रूप में डॉ नायर ने चंद्रयान अभियान को सफलतापूर्वक पूरा किया है और इस नए प्रयोग से छत्तीसगढ़ को भी कहीं न कहीं लाभ जरुर होगा. वैसे भी छत्तीसगढ़ को अन्सृक्ष संस्थान - इसरो- ने अबूझमाड के दुर्गम इलाकों के सर्वेक्षण में काफी मदद की है. इसलिए भी डॉ नायर का यहाँ से विशेष लगाव है. बेशक डॉ नायर के यहाँ आने पर राज्य के लोगों को गर्व हुआ है, लेकिन डॉ नायर को यहाँ आकर गर्व तभी होगा जब यहाँ के युवा उनके विचारों से प्रेरित होकर राज्य और देश के विकास में अपनी भूमिका निभाने में सफल होंगे . ----

सबो झिन ला चाही लालबत्ती

सबो झिन ला चाही लालबत्ती

भाजपा के सरकार छत्तीसगढ़ म एक घांव फेर बन गे हे। ए दरी के चुनाव म भाजपा के पाछू ओखर दूसर संशा के कार्यकर्त्ता मन दिन-रात काम करीं हें, तभे भगवा सरकार ह अपन दुसरईया पारी खेले बार आए सकिस हे। इकहरे सेती अब भाजपा के नेता मन अपन सहयोगी संस्था के कार्यकर्त्ता मन ला लालबत्ती दे के बिचार करत हें। लाल बत्ती के मतलब अईसे हे की कोनो-न-कोनो सरकारी संस्था के मुखिया बनाए जाय, अउ तहां ले ओ कार्यकर्त्ता मन ल लालबत्ती वाला मोटर खुदे मिल जाही। तौ रईपुर के लोगन ल एखर बर तियार रहना चाही कि अवईया दिन म, सब्बो डाहर लालेच बत्ती देखे जा सकत हे. -----

Sunday, January 11, 2009

छत्तीसगढ़ के सब्द्कोस

छत्तीसगढ़ के सब्द्कोस

छत्तीसगढ़ के अपन सब्द्कोस बनाये के काम पूरा होगे हे. राज्य सरकार के शैक्षिक अनुसन्धान प्रसिक्षण परिसद ह ए काम ल करके सब्बो झिन के मदद करे हवे. थोरकिच दिन पहिली राज्य के अपन भासा ल सरकारी कामकाज म सामिल करे बर राज्य सासन ह बिधानसभा म बिधेयक लाने रिहिस. अब सब्द्कोस बने ले ए काम अउ तेज हो जाही. अईसने नवा-नवा परयास करे ले छत्तीसगढ़ के भासा के तरक्की होही, जेखर फायदा सबो मनखे मन ल घलो होबे करही.

नक्सली मुठभेड़ पर मतभेद

नक्सली मुठभेड़ पर मतभेद

हाल ही में छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले में कथित नक्सली मुठभेड़ में १५ लोगों की मौत से बवाल मचा हुआ है। एक तरफ राज्य पुलिस यह दावा कर रही है कि मुठभेड़ असली है और छह मृतकों के शव बरामद कर लिए गए हैं। लेकिन दंतेवाडा जिले के सिंगारम गाँव हुई इस घटना को लेकर स्थानीय आदिवासी समुदाय में भी रोष व्याप्त है. आखिर इस मुठभेड़ का सच क्या है, यह तो आने वाले दिनों में उजागर हो ही जायेगा. तब तक राज्य की पुलिस को यह जवाब तो देना ही होगा कि इस मुठभेड़ पर उंगली क्यों उठ रही है? इससे पहले ही राज्य में नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ होते रहे है और मीडिया ने उनके समाचार भी प्रकाशित किये है. इतना ही नहीं, जब- जब पुलिस ने साहसपूर्ण ढंग से नक्सलियों का मुकाबला किया है, तब-तब मीडिया ने उसे पर्याप्त महत्त्व भी दिया है. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि पुलिस को इस बार अपने दावे को साबित करने के लिए तरह-तरह के प्रयास करने पद रहे हैं? करीब दो वर्ष पहले भी एक ऐसी घटना हुई थी जब बस्तर के ७९ आदिवासियों को पुलिस मुख्यालय में मीडिया के सामने पेश किया गया था. तब भी यह प्रचारित किया गया था कि यह अब तक का सबसे बड़ा आत्म समर्पण है. बाद में यह बात भी साफ़ हो गयी कि उनमे ७९ लोगों में से अधिकांश स्थानीय आदिवासी थे और ज्यादातर लोग केवल संघम सदस्य ही थे. बार-बार ऐसी घटना के होने से पुलिस की छवि नकारात्मक होने का खतरा भी हो जाता है. इससे पहले कि आदिवासी अपने परिजनों के कथित रूप से मारे जाने की जानकारी पाकर उग्र हो जाएँ, राज्य शासन को भी स्वयं होकर कार्रवाई करनी चाहिए. एक संदेहपूर्ण घटना को अगर दबाने की कोशिश की गयी तो आगे जो घटनाएँ वास्तव में होंगी, उन पर भी सवाल उठने का खतरा बना रहेगा.

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सड़क म सब्जी बजार

सड़क म सब्जी बजार

रईपुर म सब्जी के जतका बजार हे, ओमा ले एकादे- दू बजार अईसे होही जौन सड़क उप्पर नई लगत होही. आमापारा, रामकुंड, गुढियारी, फाफाडीह अउ महोबाबजार असन कतको पारा-मोहल्ला म सब्जी बजार सदके उप्पर लगत रहिथे. एक कोती रईपुर ल रजधानी बना दे गे हे, फेर नगर निगम के साहब मन एखर खिलाप कोनो ठोस कारवाई आज तक नई कर पाए हें. थोडिक-थोडिक दिन म साहब मन के गाडी आते अउ सब्जी वाला मन के समान ल उठा के रेंग देथे. एखर ले कोनो भी समस्या के हल नई निकल सकय. अईसे म सड़क उप्पर गाड़ी चलैया मनखे मन के परसानी ल घलो खियाल म रखे बर परही. सब्जी वाला मन के सेती ट्राफिक के समस्या घलो बाढ़त जात हे. संगे-संग एखरो उप्पर बिचार करना जरुरी हे.

छ.ग. में कमांडो बटालियन


छ.ग. में कमांडो बटालियन


छत्तीसगढ़ में कमांडो बटालियन की स्थापना से नक्सली समस्या का मुकाबला करने में राज्य सरकार को काफी मदद मिलेगी. हाल ही में राज्यपाल ने इसकी स्थापना रायपुर के निकट अमलेश्वर बस्ती में करते हुए यह उम्मीद जताई कि अब राज्य की पुलिस को भी कमांडो का साथ मिलने से नक्सली मोर्चे पर लडाई लड़ने के लिए एक मजबूत कवच मिल गया है. इस कमांडो के जवान न केवल युद्ध कौशल के जानकार होंगे, बल्कि वे विषम परिस्थितियों में भी काम करने के लिए प्रशिक्षित होंगे. चूँकि नक्सली, गुरिल्ला युद्ध शैली में अपना अभियान चलाते हैं, इसलिए उनके मुकाबले में पुलिस को कई बार बहुत अधिक चुनौती का सामना करना पड़ता है. युद्ध शैली में अपेक्षाकृत काम निपुड होने के कारण पुलिस को नक्सलियों की तलाशी अभियान में कई बार ज्यादा नुकसान भी होता है. लेकिन कमांडो दल के गठित हो जाने से यह समस्या भी काफी हद तक दूर हो जायेगी. छत्तीसगढ़ में शुरुआत में दो बटालियन सरगुजा और बस्तर संभाग में रखे जायेंगे. इस कमांडो को राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एन.एन.जी.) की तरह मुश्किल परिस्थितियों में अपना काम करने के लिए भी शारीरिक रूप से तैयार किया जायेगा. साथ ही साथ, इन कमांडो को आधुनिक हथियार चलाने के लिए भी प्रशिक्षण दिया जायेगा. कांकेर के "काउंटर टेरोरिस्म एंड जंगल वारफेयर स्कूल के बाद इसे राज्य के लिए दूसरी बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है. इस कमांडो बटालियन के आने से यह भी तय है कि अब राज्य में नक्सली संगठनो के खिलाफ बड़े बड़े आपरेशन होते रहेंगे और राज्य की सुरक्षा एजेन्सी माओवादियों के विरुद्ध पहले से और भी ज्यादा आक्रामक होकर अपना काम करेगी. एक- दो साल पहले तक राज्य की पुलिस नक्सलियों के विरुद्ध रक्षात्मक ढंग से काम कर रही थी. लेकिन अब पुलिस और सुरक्षा बल के जवान नक्सलियों के इलाके में घुसकर उनके खिलाफ आपरेशन चला रहे है. जाहिर है, इससे राज्य में सक्रिय नक्सली संगठन की चिंता भी बढेगी. सलवा जुडूम के कारण राज्य के नक्सली संगठन पहले से ही कुछ बेचैन होने लगे थे. अब कमांडो बटालियन के गठित होने से भी उनकी गतिविधियों और कार्यप्रणाली में अंतर आना तय है.
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Friday, January 9, 2009

छ. ग. में भाजपा मंत्रियों के नए तेवर

छ. ग. में भाजपा मंत्रियों के नए तेवर

छत्तीसगढ़ में भाजपा मंत्रियो के नए तेवर से अधिकारी बेहद हैरान हैं। पिछली पारी में भाजपा सरकार की छवि आम तौर पर यही थी की मुख्यमंत्री तो अधिकारियों पर अपना नियंत्रण रखने में सफल थे , लेकिन अधिकांश मंत्री ऐसा करने में नाकाम रहे. इस बार संभवतः भाजपा के आला नेताओं ने अपने मंत्रियो को यह चेताया होगा कि उन्हें दूसरी पारी में आरम्भ से ही सख्ती दिखानी होगी, तभी भाजपा अपने घोषणा पत्र के वादों को अधिकारियों की मदद से पूरा करवा पायेगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो जनता के विश्वास पर सरकार खरी नहीं उतर पायेगी और यह नकारात्मक छवि पार्टी को अगले चुनाव में भरी पड़ सकती है. इन सभी बातों के कारण ही संभवतः ज्यादातर मंत्री शुरू से ही अपने मातहत अधिकारियों को सख्ती से आदेश देते सुने गए है कि उन्हें सरकार की योजनाओं को जल्द से जल्द अमल में लाना होगा. सबसे पहले स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल की समीक्षा बैठक में यह देखा गया. फिर यही सब जल संसाधन मंत्री हेमचंद यादव की बैठक में भी हुआ. इसी कड़ी में आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप भी केबिनेट मंत्री बनने के बाद पहले से ज्यादा सख्त मालूम पड़ते हैं. अगर ऐसा अधिकांश मंत्री कर रहे है तो निश्चित ही यह एक योजना के तहत लाया गया बदलाव दिखाई देता है. इसके पीछे पार्टी की यह मंशा हो सकती है कि प्रारंभ से ही सरकार की छवि जनता के बीच कठोर प्रशासक के रूप में बनाई जाये. एक और बात प्रतीत होती है कि अब राज्य सरकार के मंत्री भ्रस्टाचार के मामलो में कोई रियायत नहीं करने वाले है. भाजपा की पिछली सरकार में भ्रष्टाचार के कई मुद्दे सामने आये थे और इससे सरकार की फजीहत भी हुई थी. लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने सहयोगियों को इस विषय में हिदायत अवश्य दी होगी कि ऐसी छोटी सी भी गलती इस बार बड़ी चूक मानी जायेगी, क्योंकि जनता ने पार्टी को दोबारा यही सोचकर सता में भेजा है कि अब कोई भूल नहीं नहीं होनी चाहिए. अगर इन सब बातो के कारण सरकार में चुस्ती आ रही है तो इसका स्वागत ही किया जाना चाहिए , क्योंकि इससे अंत में फायदा तो जनता को ही होगा. ----

सिबू सोरेन के हारे के मतलब ?

सिबू सोरेन के हारे के मतलब ?

सिबू सोरेन झारखण्ड के सबले दबंग नेता माने जाथे. फेर ए दरी के चुनाव म ओ हा खुदे हार गिस. एखर मतलब का हे ? अईसन भारत के इतिहास माँ पहिली घाँव होईस हे की कोनो नेता मुख्यमंत्री बने के बाद घलो अपन चुनाव म हार गिस. एखर मतलब एही हे की जनता अब कोनो के ठेका नै लेवय की ओखर मर्जी नई रही तभो ले जितावत रही. भारत के लोकतंत्र बार ए घटना एक थान बहुत बड़े सबक कहे जा सकत हे की अब कोनो भी नेता अपन आप ला अतेक जादा बड़े जहाँ समझे की ओहा जौन चाही तों होवत रही. सोरेन जनता के नेता हवे और ओखर काम घलो जमीन ले जुड़े रहिथे. फेर अब जनता अपन अधिकार ला चिन्हे बार लगे हे. तिही पाए के नेता मन के नवा नवा परसनी बाधत जात हे. एखर ले नेता मन के दिमाग घलो अब ठिकाने ले रही -अईसे कहे जा सकत हे.

सिक्का के कालाबाजारी कईसे रुकही

सिक्का के कालाबाजारी कईसे रुकही
छत्तीसगढ़ म पाछू कतको बछर ले अईसे देखे जात हे कि आठ आना के सिक्का ल कोनो ले बर नई देखय। फेर इहाँ के ब्योपारी मन के संस्था ह नागपुर ले सिक्का ले के आईस हे, अउ ओला मनखे मन ल बांटे के बेवस्था करे हे. एमा एक, दू अउ पांच रुपिया के सिक्का सामिल हे. अईसे समझे जा सकत हे कि बहुत अकन सिक्का बांटे ले लोगन के मन बदलही. सबले बने बात तो इही हे कि जौन ब्योपारी मन खुदे छोटे सिक्का ल ले बर मुहूँ बनावत रहिथें, अब ओही मन खुदे सिक्का बांटे हवें . एखर सेती अब ओही मन ला सिक्का ले म कोनो हर्जा नई होना चाही. एखर ले छोटे-छोटे लेन-देन के काम म लोगन ल परसानी नई होही- अईसे सोचे जा सकत हे.
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ट्रक हड़ताल और आम आदमी

ट्रक हड़ताल और आम आदमी
देश में ट्रक ट्रांसपोर्ट वालों की हड़ताल पहले भी कई बार हो चुकी है. जब कभी भी ऐसी स्थिति आती है तो हड़ताल का सबसे ज्यादा असर आम आदमी पर ही पड़ता है. जो बड़े और समृद्ध लोग होते हैं, वे तो किसी भी तरह se अपने लिए व्यवस्था कर ही लेते है, लेकिन जो आम आदमी है, उसका जीवन ऐसे हड़ताल से सीधे प्रभावित होता है. तमाम जरुरी चीजों के दम बढ़ जाते हैं. आवागमन भी प्रभावित हो जाता है. इसके बावजूद सरकार पर कोई असर नहीं दिखता. ऐसा लगता है जैसे सरकार को आम आदमी की तकलीफ से कोई मतलब ही नहीं है. एक तरफ सरकार पेट्रोल और डीज़ल के दाम करने में देर कर रही है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य लगातार कम हो रहे हैं. ऐसे में देश के ट्रांसपोर्टर अगर यह मांग कर रहे हैं की डीज़ल के दाम कम किये जाएँ तो इसमें क्या गलत है. हर चीज का मूल्य बढ़ने की दुहाई देकर रोड टैक्स से लेकर अन्य दूसरे शुल्क जब चाहें तब बाधा दिए जाते हैं, तो फिर अकेले ट्रांसपोर्टर ने क्या गुनाह किया है, जो उनकी ही बात नहीं सुनी जाती. सरकार जब पेट्रोल और डीजल के दाम बढाती है तो उसका तर्क यह होता है कि अंतर राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का मूल्य बढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि कच्चे तेल का मूल्य तीन गुना से भी अधिक कम हो गया है, तो फिर उपभोक्ताओं को इसका लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए ? ट्रक वालों की i हड़ताल के कारण देश भर में पेट्रोल पम्प खाली हो गए हैं. अगर समय रहते सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी बिगड़ सकती है, और तब जनता का आक्रोश भी सतह पर आ सकता है. ----

Thursday, January 8, 2009

चुनाव के बेरा में फेर सस्ती होही पेट्रोल

चुनाव के बेरा में फेर सस्ती होही पेट्रोल
दिल्ली म बईठे केंद्र सरकार अपन पहिली चार बरिस के कामकाज म कतको घांव पेट्रोल के किम्मत बाढे रिहिस. फेर पाछू दू-तीन महिना म केंद सरकार ह पेरोल के किम्मत ला कमती करे के घोसना करे रिहिस. अब एक घांव फेर पेट्रोल सस्ती होवैया हे. अईसे फैसला के पाछू औ कुछु कारण होवय चाहे जहाँ होवए, फेर अटका तो कहे जा सकत हे कि अवैया चुनाव के तियारी केंद सरकार ह अभीच्चे ले सुरु कर दे हवे. ऐसे सुने म आवत हे कि अगले महिना पेट्रोल के किम्मत कमती होही, तो ओखर ले कांग्रेस ला चुनाव म फायदा हो सकत हे. ऐसने, रसोई गैस के किम्मत ला घलो कमती करे के बिचार चलत हे. एहू फैसला ले माई लोगन के घुस्सा ला कमती करे के उपाय करे गे हे. अब इ फैसला के फायदा चुनाव माँ कतका होही, इ तो चार महिना बादेच माँ पता चलही. ----

ताराचंद साहू का भाजपा से अलग होना

भाजपा की राजनीति में भूचाल

भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद ताराचंद साहू को भाजपा ने छः साल के लिए पार्टी से निष्कासित के राज्य की शांत राजनीति में एक भूचाल ला दिया है। खुद ताराचंद ने ही इस बात को स्वीकार भी किया है कि उन्होंने प्रेमप्रकाश पाण्डेय को हारने की कोशिश की थी. उन्होंने अभी भी एक अन्य नेता को अपनी हिट लिस्ट में बाकी बताया है, जिसे वे हराना चाहते थे. राजनीति में उठा-पटक और शह-मात का खेल चलना कोई नई बात भी नहीं है. इससे पहले भी राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता निकाले जाते रहे है और फिर वापिस भी आते रहे है. लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है. एक बार असंतोष के बीज पनपने लगे तो उनकी फसल को विरोधी दल भी और बढाने में पीछे नहीं रहते. अब चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का खेमा ताराचंद साहू से संपर्क करने में जुटा हुआ है. भले ही ताराचंद साहू यह कहते रहे कि उन्होंने अभी भाजपा छोड़ने के विषय में कुछ नहीं सोचा है, लेकिन राजनीति में सारी संभावनाएं खुली रहती हैं और कोई भी पुराना नेता अपने पत्ते शुरू में ही नहीं खोल देता. इस कठोर फैसले का परिणाम राज्य सरकार के लिए क्या होगा और पार्टी के लोकसभा चुनाव में ताराचंद किस तरह से भाजपा के अन्य नेताओं को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकते है- इन मुद्दों पर पार्टी के बड़े नेताओं ने ज़रूर सोचा होगा. इस घटना से इतना तो साफ़ है कि प्रदेश में गुट-बाजी की बीमारी दोनों बड़े दल ग्रसित हैं. इस पर काबू कैसे पाया जाये और चुनाव के समय खास तौर पर इसे कैसे नियंत्रित किया जाये- यह फ़िलहाल भाजपा के आला नेताओं को सोचना है. अगर इस तरह के मामलों को आपसी समझ-बूझ से निपटाया जा सके तो यह सभी के लिए बेहतर होगा. ऐसे प्रयासों से नेताओं के आपसी मन- मुटाव तो कम होंगे ही, साथ- साथ विरोधी दलों को भी असंतोष का राजनीतिक फायदा उठाने से रोका जा सकेगा. वर्ना, कांग्रेस के लिए तो ताराचंद का निष्कासन ठीक उसी तरह है जैसे- "अँधा क्या चाहे, दो आँख".
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Wednesday, January 7, 2009

गोबिंदराम ला मिलही बहुमत सन्मान

गोबिंदराम ला मिलही बहुमत सन्मान

छत्तीसगढ़ के जाने-माने नचा कलाकार गोबिंदराम ला ए बछर के बहुमत सन्मान मिलैया हे. गोबिंद राम निर्मलकर के नांव सबले पहिली रवेली नाचा पाल्टी ले चर्चा माँ आये रिहिस. एखर बाद रिंगनी के पाल्टी और लाखोली के पाल्टी में घलो गोबिंद राम के काम ला देखैया मन बहुत जादा पसंद करे रिहिन. तिरसठ बछर के गोबिंदराम ला आघू चल के हबीब तनवीर के नया थियेटर माँ घलो बहुत सन्मान मिलिस, काबर की उनखर कला ह जिनगी के घाम म तिप के चमके हे, कोनो सिखोय नई हे. गोबिंद राम के एही नाटक कला के सेती उनला बहुमत सन्मान बार चुने गे हे.

सलवा जुडूम शिविर में राज्यपाल का जाना


सलवा जुडूम शिविर में राज्यपाल का जाना


दंतेवाडा के बीहड़ नक्सली इलाके में राज्यपाल का जाना और वहां के सलवा जुडूम शिविरों में आदिवासियों से मिलना निश्चित रूप से एक बड़ी घटना है. आम तौर पर महामहिम होने के नाते राज्यपाल का दौरा कार्यक्रमों और आयोजनों तक ही सीमित कर दिया जाता है . लेकिन छत्तीसगढ़ के राज्यपाल चूँकि स्वयं पुलिस और गुप्तचर सेवा में देश के सबसे बड़े पद पर रहे है, इसलिए वे जानते है की आंतरिक असुरक्षा के इलाके में रहने वाले नागरिक किस तरह की मुश्किल परिस्थिति में अपना जीवन बिताते होंगे. अपने विशिष्ट जारी अनुभव के कारण ही बस्तर के आदिवासिओं की त्रासदी को राज्यपाल बहुत से दूसरे अधिकारिओं की तुलना में ज्यादा गहराई से महसूस कर सकते है. उनके सलवा जुडूम शिविरों में उनके जाने से नक्सलियों के खिलाफ अपनी जान जोखिम में डालने वाले आदिवासियों का हौसला और बढ़ गया होगा. राज्यपाल के स्वयं इन रहत शिविरों को देखने से एक बात यह भी है कि उन्हें कोई दलगत राजनीति नहीं करनी है, इसलिए उनका दृष्टिकोण सबसे अलग होगा. अपने प्रवास के दौरान राज्यपाल ने कहा है कि नक्सली समस्या का समाधान बातचीत से संभव है- उनके इस कथन से सलवा जुडूम शिविरों में रहने वालो के लिए एक उम्मीद जगी है कि अब राज्य सरकार भी इस समस्या को हल करना चाहती है. सलवा जुडूम शिविरों में रहने वाले आदिवासियों ने इस बार लोकतंत्र की जीत में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है. राज्यपाल ने सभी आदिवासी समुदायों को उनके साहसपूर्ण कदम के लिए धन्यवाद दिया है. इस बात का भी दूरगामी असर पड़ेगा. सलवा जुडूम शिविरों में अव्यवस्था की अक्सर शिकायतें आती रहती है. मानवाधिकार कार्यकर्त्ता भी इस मुद्दे को उठाते रहते है. राज्यपाल ने अब चूँकि स्वयं साडी परिस्थितियों को अपनी आँखों से देखा है, इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके जाने के बाद राज्य सरकार जल्द ही सभी रहत शिविरों में बुनियादी व्यवस्थाएं बेहतर करने की पहल करेगी.----

Monday, January 5, 2009

छत्तीसगढ़ के अपन भासा बार कोसिस

छत्तीसगढ़ नवा राज्य बने ले इहाँ के कला संस्कृति के बढ़ावा तो होबे करत हे, संगे-संग इहाँ के अपन भासा ला बनाए बार घलो कोसिस होना बने लच्छन हे। बिधानसभा मा राज्यपाल हा ए बात के भरोसा देवाय हें कि राज्य के अपन बोली ला भासा बनाए बार सब्बो किसम के कोसिस करे जाही। सबले पहिली एला संबिधान के अनुसूची मा सामिल करवाए बार दरखास दे जाही। एखर बादेच अगला कदम उठे जा सकत हे. वईसे केहे जाय तौ छत्तीसगढ़ के अपन भासा तो आज ले नई बल्किन कतको जमाना पहिली ले हवे, फेर ओला लोगन जानत पहिचानत नई रिहिन. अब राज्य बने ले ए बिसय मा कोसिस सुरु होए हे. भाजपा सरकार हा अपन घोसना पात्र में घलो छत्तीसगढ़ के अपन भासा ला मान्यता देवाय बार कोसिस करे के बात केहे रिहिस. अब एही बचन ला पूरा करे के बेरा आ गे हे.


रायपुर को राजधानी बनाने से पहले...

रायपुर को राजधानी बनाने से पहले...

रायपुर को राजधानी का दर्जा तो छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के साथ ही मिल गया था. लेकिन, आप और हम- सभी यह जानते है, कि इन आठ बरसो में रायपुर पूरी तरह से राजधानी के अनुरूप आकार नहीं ले पाया. इसके पीछे बहुत से कारण बताये जा सकते है. इनमे धूल की समस्या सबसे बड़ी है. अब तो रायपुर को देश के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में भी एक नकारात्मक पहचान मिलने लगी है. हाल ही में देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने रायपुर को देश के बीस सबसे तेज विकसित होते शहरों में गिना तो है, लेकिन उसने यह चेतावनी भी दी है कि- रायपुर में विकास बेशक तेज है, किन्तु यहाँ विकास की दिशा स्पष्ट नहीं है. वर्तमान नगर निगम ने अपने चार साल के कार्यकाल में बहुत सी उपलब्धियां अपने नाम कर ली हैं . फिर भी रायपुर की तस्वीर कोई बहुत ज्यादा सुधर गयी हो- ऐसा नहीं कहा जा सकता. यह राजनीतिक दृष्टि से सुविधाजनक ही कहा जायेगा कि राज्य में एक बार फिर भाजपा की सरकार बन गयी है. इससे पिछले विकास कार्यों को दोबारा लागू करना सरकार के लिए आसान हो जायेगा. ऐसे में अगर रायपुर के महापौर कह रहे है कि आने वाले वर्षों में रायपुर को राजधानी के अनुरूप बनाने के लिए करोडो रुपये की योजना बनायी जायेगी, तो यह भाजपा सरकार की दूरगामी नीति से ही संभव है. रायपुर में जल- प्रदाय योजना के लिए तीन सौ करोड़ रुपये मंजूर होना इस कड़ी में पहली बड़ी सफलता है. इसके अवाला शहर से धुल ख़त्म करने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर चेकर टाईल्स लगाने का फैसला तो अच्छा है, लेकिन टाईल्स के ऊपर जो धूल छोड़ दी जा रही है, उसे भी हटाने का काम पूरी सफाई से किया जाये, तभी धूल की समस्या ख़त्म हो सकेगी, वर्ना जनता की गाढी कमाई के टैक्स से जो काम हो रहा है, वह निरर्थक हो जायेगा. इसी तरह गौरव पथ के निर्माण को भी रायपुर की एक उपलब्धि कहा जा सकता है. इससे रायपुर को राजधानी के अनुरूप गरिमा मिलेगी. अलबत्ता, एक शंका यह हमेशा रह जाती है कि रायपुर में जो भी नयी पहल की जा रही है, उसकी नियमित देखभाल के लिए भी अधिकारियों- कर्मचारियों की कोई ज़िम्मेदारी तय की जायेगी, या नहीं ? अक्सर ऐया देखा जाता है की शुरू में शहर में बहुत सी आकर्षक चीजे लगाईं जाती है. लेकिन एक बार वही चीज बिगड़ जाये या टूट जाए, तो उसे दोबारा कभी नहीं सुधार जाता. धीरे-धीरे लाखो के खर्च से बनायी गयी वे चीजे कंडम हो जाती है. इससे शहर की अकर्मण्यता तो उजागर होती ही है, साथ ही साथ शहर की कुरूपता भी बढती है. अक्सर होने वाली सडको की खुदाई भी कुरूपता को बढाने वाला एक अभिशाप बन गया है. इस दिशा में सोचे बिना, शहर को चमकाने और सजाने का चाहे कितना भी प्रयास क्यों न हो जाये वह अस्थायी ही रहेगा. बेहतर हो, कि शहर की सुन्दरता और बुनियादी विकास के लिए विशेषज्ञों से राय ली जाये और उन्ही लोगों की एक समिति बनाकर रायपुर की हर नयी योजना के लिए दूरगामी विचार किया जाए. तभी रायपुर को राजधानी की तरह सुन्दर बनाने का सपना साकार हो सकेगा. ------

छत्तीसगढ़ बिधानसभा के नवा बिहान

छत्तीसगढ़ बिधानसभा के नवा बिहान

छत्तीसगढ़ बिधानसभा के नवा बिहान होए ले राज्य के तरक्की के रद्दा तियार होही. आज ले पच्छ औ बिपच्छ दुनो एक घांव फेर मिल-जुल के राज्य के जम्मो समस्या ला दूर करे बार बिचार करहीं अउ राज्य के मनखे मन के बिकास बार चित लगा के कम करहीं. मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रतिपछ के नेता रबिन्द्र चौबे के ऊपर अब सबले बड़े जुम्मेदारी एही हे कि ए दुनो नेता मन राज्य माँ दया- मया के रिश्ता बनावें अउ दूसर मन ला घलो अइसने कम करे बार तियार करें. राज्य बिधान सभा मा धरम कौसिक के मुखिया बने ले अउ रविन्द्र चौबे के नेता प्रतिपच्छ बने ले राज्य के अलग अलग समाज मा घलो खुसी बाढ़े हे. ए दुनो नेता मन एखर पहिली कतको बरिस ले तकलीफ उठाये अउ परसानी के आगि मा तिप के निकले हवें. इही पाए के ऐसे सोंचे जा सकथे कि एमन के काम अपन पद ला देखत हुए जनता के हित मा सबले खास रही.-----

Saturday, January 3, 2009

सबूत के लड़ाई माँ उलझ गे भारत
पाकिस्तान ले आतंकवादी मन ला सौंपे के मांग करत-करत भारत हा खुदे एक ठन नवा जाल माँ उलझ गे हे। अब तो अईसे हो गे हे कि पाकिस्तान भारत ले साफ़ साफ़ कहत हे कि ओ हा आतंकवादी मन ला भारत के हाँथ माँ नई सौंपे, औ अपने देस माँ ओमान के खिलाफ करवाई करही। हमर बिदेस मंत्री प्रनव मुखर्जी अब अमरीका ला कहत हे कि ओह अपन कोती ले पाकिस्तान ऊपर दबान डाले, तभे कोनो बात हा बनही । फेर अमरीका घलो अब नवा राग अलापत हे कि पाकिस्तान अपने देस माँ आतंकवादी मन ला सजा दे देही, अतको माँ काम चल जाही । , कभू कभू लगथे कि खाली बाते के झगरा चलत हे औ करना-धरना कुछु नई हे, अवैया कुछु दिन माँ भारत के सरकार हा कोनो कडा कदम नई उठाही तौ एखर ले पाकिस्तान के हिम्मत अउ बढ़ जाही,

गृहमंत्री कँवर की कार्यशैली और अपराध

गृहमंत्री कँवर की कार्यशैली और अपराध

छत्तीसगढ़ के नए गृहमंत्री के रूप में ननकीराम कँवर के जो छापामार शैली शुरू की है, उससे पहले तो पुलिस महकमे में ही भूचाल आया हुआ है. जो लोग कँवर की पिछली पारी के बारे में जानते है, उन्हें यह भी अंदाजा है कि कँवर गलती और नियन-विरुद्ध कार्य का पता चलते ही किस तरह से कार्रवाई करते है. यहाँ तक कि पिछली बार कँवर को अपनी इसी आक्रामक शैली के कारण मंत्री पद भी गंवाना पड़ा था. लेकिन फिर भी कंवर ने अपने आप को नहीं बदला. अब भाजपा की दूसरी पारी में कँवर को गृहमंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपकर डॉ रमन सिंह ने भी उनका कद बढाया है और उनकी क्षमता का सम्मान किया है. कँवर को अगर इस बार राजनीतिक पैंतरेबाजी का शिकार नहीं बनाया गया तो वे निश्चित रूप छत्तीसगढ़ में अपराध के ऊपर जाते ग्राफ को नीचे लाने में कसर नहीं छोडेंगे.अभी ताजा उदाहरण यह है कि कँवर ने अवैध शराब के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है. उन्होंने खासतौर पर रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के पुलिस के अधिकारियों से दो टूक कह दिया है कि अवैध शराब के खिलाफ अभियान तेज किया जाये. इसी तरह जुआ सत्ता और शहरी अपराध पर भी अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाये जायें. पुलिस पर अक्सर ऐसे आरोप लगते रहे है कि वह अपराध को रोकने के लिए तत्काल कोई कदम उठाने में नाकाम हो जाती है. ऐसे में कँवर की चेतावनी से न सिर्फ पुलिस कि कार्यशैली में बलव आएगा, बल्कि उसकी छवि भी सुधरेगी, बशर्ते वह कँवर के निर्देशों को अपने खिलाफ न समझकर उसे सकारात्मक रोप में स्वीकार करे. कँवर ने नक्सली मामले पर भी बातचीत का रास्ता खुला होने का बयान देकर एक सकारात्मक कदम उठाया है. अगर उनके प्रयासों से ऐसी जरा भी संभावना बनती है कि नक्सली किसी वार्ता के लिए तैयार हो जाएं तो यह गृहमंत्री के रूप में कँवर के लिए बड़ी कम याबी मणि जायेगी. हलाकि अभी ऐसा कुछ भी सोचना दिल्ली दूर होने जैसा ही है. फिर भी कँवर के अनुभव और उनकी इमानदार छवि को देखते हुए किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. भविष्य में क्या होने वाला है, यह तो कोई भी नहीं बता सकता, लेकिन किसी भी बुदी स्थिति को बदलने के लिए पहला साहसिक कदम उठाया गया, यह तो मन्ना ही होगा. देखना यह है कि कँवर के सख्त निर्देशों से पुलिस के कामकाज में कैसा परिवर्तन आता है, और राज्य में अपराध के आंकडों में कितनी गिरावट आती है ?

ई-मितान से सुधरेगी सरकार की छवि

ई-मितान से सुधरेगी सरकार की छवि

छत्तीसगढ़ में राज्य निर्माण के समय से ही ई- प्रशासन को काफी महत्व दिया गया था। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में अजित जोगी ने निस्संदेह एक दूरगामी सोच को लेकर राज्य के विकास की बुनियाद रखी. बाद में भाजपा के शासनकाल में डॉ रमन सिंह ने भी ई-प्रशासन को लगातार प्रोत्साहित किया. इसी का नतीजा है की राज्य की स्वायत्त संस्था छत्तीसगढ़ इन्फोटेक- एंड बायोटेक प्रमोशन सोसाइटी (चिप्स) को अब तक दो बड़े पुरस्कार मिल चुके है. हाल ही में चिप्स को एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर का एक प्रतिष्टित सम्मान मिला है. राज्य सरकार ने भी प्रदेश के प्रायः सभी वोभागों को ई- प्रशासन से जोड़ने में रूचि और तत्परता दोनों दिखाई है. इसी कड़ी में रायपुर जिले के कलेक्टर कार्यालय में ई-मितान योजना की शुरुआत को काफी महत्वपूर्ण कदम मन जा सकता है. इसमें कोई भी व्यक्ति कही से भी अपने या किसी सायबर कैफे में बैठकर कोई शिकायत सीधे कलेक्टर के नाम ई-मितान की साईट पर क्लिक करके दर्ज कर सकता है. इस योजना का सबसे अच्छा पहलू यह है कि जैसे ही कोई व्यक्ति अपनी शिकायत दर्ज करेगा, वह शिकायत उसी समय एक साथ कलेक्टर के अलावा अपर कलेक्टर और सभी वोभागीय अधिकारियों के ई-मेल में दर्ज हो जायेगा. अगर किसी अधिकारी ने शिकायत पर कार्रवाई करने में देर की तो इसकी सूचना भी उसके ऊपर बैठे सभी अधिकारियों को तत्काल हो जायेगी. ऐसे में कोई भी अधिकारी अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं पायेगा. इसके पहले शिकायत दर्ज कराने पर यही होता था कि अधिकारी या तो अपने मातहत को कागज़ भेजकर इतिश्री समझ लेता था. फिर उस कागज़ का क्या होता रहा होगा, आप खुद ही समझ सकते है. लेकिन अब ऐसी कोई भी हरकत अधिकारी को महँगी पड़ सकती है, क्योंकि कलेक्टर स्वयं भी इस शिकायत को देख चुके होंगे. निश्चित रूप से इस योजना से कागजी कार्रवाई की धीमी गति से निजात मिलेगी और हर शिकायत पर कार्रवाई होने की समय- सीमा तय हो जायेगी. इससे जहाँ एक ओर प्रशासन में लालफीताशाही कम होगी, वाहों दूसरी तरह सरकार की छवि भी सुधरेगी, क्योंकि उनकी हर शिकायत का समाधान समय पर होने लगेगा. ------

बिधायक मन छत्तीसगढीं मा बोलहीं तो बने होही...


बिधायक मन छत्तीसगढीं मा बोलहीं तो बने होही...


छत्तीसगढीं राजभासा आयोग हा परदेस के जम्मो बिधायक मन ले कहे हे के ओमान बिधन सभा के पहिली बैठका मा छत्तीसगढीं के लाज रखके इही भाखा के इस्तमाल करहिं तौ बने होही. एखर ले छत्तीसगढीं के मान तौ बाढ़बे करही, संगे-संग छत्तीसगढीं के परचार घलो होही. बिधायक मन के अईसन कदम ले ए भाखा ला राजभासा बनाए के पर्यास ताको आघू बढ़ही. वईसे के हे जाए तौ जम्मो राज्य मा अपन अपन बोली भाखा ला माया करेच जाते. एमा कोनो नवा बात नो आय. इही पाए के छत्तीसगढीं ला जादा ले जादा इस्तमाल करे बार लोगन ला आघू आना चाही. तभे तो ए अव राज्य के सां हा बढ़ही, और बिधायक मन के देखा-सीखी दूसर मनखे मन घलो छत्तीसगढीं ला घर ले बाहिर सब्बो किसम के काम-काज मा इस्तमाल करे बार तियार होहीं. -----

Friday, January 2, 2009

कर्मचारियों को नए तोहफे की उम्मीद

कर्मचारियों को नए तोहफे की उम्मीद
डॉ रमन सिंह की पिछली सरकार में कर्मचारियों ने कई बर अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन-प्रदर्शन किया था। ऐसा भी लगता था कि राज्य सरकार कर्मचारियों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील नहीं है। खर तौर पर शिक्षाकर्मियों कि मांगो पर विचार करने में राज्य सरकार ने अक्सर देर भी की. इस आधार पर हाल ही में हुए विधान सभा चुनाव में एक वर्ग ऐसा भी सोच रहा था की कहीं कर्मचारियों का गुस्सा राज्य सरकार के खिलाफ न चला जाये. इसके बावजूद भाजपा की सरकार दोबारा बनी और अब मुख्यमंत्री स्वयं इस बात को प्रारंभ से कह रहे हैं कि उनकी सरकार कर्मचारियों के हितों के प्रति पूरी तरह से संवेदनशील रहेगी. अगर ऐसा है तो यह पूरे राज्य के लिए एक अच्छा संकेत है. राज्य में करीब ढाई लाख सरकारी कर्मचारी हैं और इस तरह कर्मचारी परिवारों की आबादी दस लाख तक औसत रूप में मानी जा सकती है. अगर यह बड़ा तबका राज्य सरकार से संतुष्ट रहा तो इस सकारात्मक छवि का असर बाकी वर्गों पर सीधे पड़ता है. इस तथ्य को राज्य सरकार भी अच्छी तरह से समझती है. तभी तो अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम महीनों में उसने कुछ ऐसे फैसले लिए, जिससे कर्मचारी वर्ग को खुश किया जा सके. पिछले कार्यकाल में चौथे वर्ष के राज्योत्सव में रमन सिंह ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने की घोषणा यही सोच कर की थी की इससे एक बड़ा वर्ग भाजपा से जुड़ जायेगा. हाल में विधान सभा चुनाव में डाक मत पत्रों का साठ प्रतिशत हिस्सा भाजपा को मिलना भी इसी तथ्य को रेखांकित करता है कि भाजपा ने चुनाव में जाते-जाते तक अपने अंतिम महीनो में कर्मचारियों की नाराजगी को काफी हद तक दूर कर लिया था. शायद इसी समर्थन से प्रेरित होकर इस बार मुख्यमंत्री कर्मचारियों को यह पूरी तरह से भरोसा दिला देना चाहते है कि उनकी सरकार कर्मचारियों के हित में फैसले लेने के लिए हमेशा तैयार रहेगी. देखना यह है की इस बार भाजपा सरकार के रवैये पर कर्मचारी वर्ग किस तरह की प्रतिक्रिया देता है ?----

दिल्ली के कोहरा माँ तोप गे इंडिया गेट


दिल्ली के कोहरा माँ तोप गे इंडिया गेट
दिल्ली माँ पाछू एक हफ्ता ले अइसन कोहरा छाए हे कि कुछु नई दिखत हे. मनखे- तो मनखे, बड़े-बड़े मकानों तक नई दिखत हे. सबले आस्चर्ज तो तब होईस जब दिल्ली के सान कहवैया इंडिया गेट तको कोहरा माँ उप्पर ले तरी तक तोपा गे रिहिस. इंडिया गेट के अइसन फोटू एखर पहिली सायदे कोनो देखे रिहिस होही. एखर ले यहू पता चलथे कि ए दरी दिल्ली माँ बहुते जादा सीत परत हे. दिल्ली के सीत के हालत तो अइसन हे कि अपन हाथ भर के दुरिहा माँ जौन मनखे खड़े होही तौन दूसर मनखे ला देखे नई सकही. धरती मैया अउ ओखर बादर- पानी के यहू एक ठन खेलेच कहे जा सकथे के जौन जिनगी के अइसन रूप ला घलो देखे बर लोगन ला मिलत हे. फेर जतका दिन अइसन सीत परही ओतका दिन दिल्ली वाला मनखे मन के जिउ के केवा बनेच रही.----

Thursday, January 1, 2009

कटे-फटे होंठ वाला लईका मन के खुसी...

रईपुर मा पाछू पाँच- छे बारिस ले दुनिया के जाने-माने प्लास्टिक सर्जरी करईया डाक्टर सरद दीक्षित अईसन कतको गरीब लईका मन के चेहरा-मोहरा ला सुंदर बनाए के काम करे हे, जिनखर होंठ जनम के संग ले कटे-फटे रिहिस। फेर ए घांव नवा साल मा रायपुर बार खुसी के बात ए हवे के अब इहिन्चे के डाक्टर मन अइसन पुन्न के काम करे बार आगू आवत हें। पाछू एक हपता ले छत्तीसगढ़ के दुरिहा-दुरिहा ले गरीब परिवार मन इहाँ आवत हें अउ अपन लईका मन के कटे-फटे होंठ के अपरेसन करावत हें. नवा साल के सुरूच मा एखर ले जादा बने खभर अउ का होही, जेखर ले कतको परिवार मा खुसी लहुंट गे हे.

जो लूट लें कंहार ही दुल्हन की पालकी.....


जो लूट लें कंहार ही दुल्हन की पालकी.....


खबरों की दुनिया में काम करते- करते अभी अभी एक ऐसी खबर मिली जिसके बारे में बात करना भी इस नए साल के मौके पर मुंह का जायका खराब करने जैसा लगता है. लेकिन खबर को पढ़कर रौंगटे खड़े हो गए. दुर्ग रेलवे स्टेशन से गीतांजलि एक्सप्रेस के रवाना होने के बात उसी गाडी में सफ़र कर रहे एक बी.एस.एफ. जवान ने ग्यारह साल की बालिका से अनाचार करने का कुत्सित प्रयास किया. बालिका द्वारा शोर मचाये जाने पर जब दूसरे यात्रियों बे बीच बचाव किया तब कहीं जाकर बालिका का शील भंग होने से बच पाया. इस बेहद शर्मनाक हादसे की खबर पढ़कर सुप्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास 'नीरज' की चर्चित ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद हो आईं. आज़ादी के बाद देश के बुरे हाल पर उन्होंने सत्तर के दशक में लिखा था-- " जो लूट लें कंहार ही दुल्हन की पालकी हालत ये आज है मेरे हिंदुस्तान की " आज आज़ादी के साठ बरस बाद एक बार फिर हम हैवानियत की वही तस्वीर देखने को मजबूर है, जो 'नीरज' ने अपने समय में दिखाई थी. क्या हम विकास के नाम पर समाज को इसी तरह की असंवेदनशीलता की ओर ले जाना चाहते हैं ? बड़े अफ़सोस की बात है कि महिलाओं पर अत्याचार की खबरें जैसे कम पड़ रही थीं , जो मनुष्य की खाल ओढ़कर कुछ लोग छोटी- छोटी बालिकाओं पर भी बुरी नज़र डालने से बाज नहीं आ रहे हैं. इस खबर में कम से कम एक संतोष की बात यह रही कि यात्रियों ने उस नियतखोर बी.एस.एफ. जवान की धुनाई करके उसके बुरे इरादे को आगे के लिए भी रोकने का प्रयास किया. वरना, वह फिर किसी मौके पर किसी और मासूम को अपना शिकार बनाने में नहीं हिचकता. अब वह कम से कम अपनी इस बार की हालत को याद करके दोबारा बुरी नीयत जागने पर दो बार तो ज़रूर सोचेगा. यात्रियों द्वारा जवान की पिटाई करके कानून को अपने हाथ में लेने की प्रवृत्ति को बेशक न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन जिन परिस्थितियों में इस घटना को रोकना था, उस समय यात्रियों ने यही ठीक समझा और किया. बहरहाल ऐसी घटनाएं फिर नहीं होंगी, ऐसा सोचना तो काल्पनिक ही होगा, इसलिए बेहतर यही होगा कि लोगों को ऐसी परिस्थितियों के लिए पहले से ही तैयार किया जाये. खास तौर पर बालिकाओं को हिम्मत दिलाना और अपनी रक्षा के प्रति सचेत करना भी जरुरी होगा, तभी नियतखोर लोगों के दुस्साहस को रोका जा सकता है.-----