Wednesday, February 16, 2011

कुछ याद उन्हें भी कर लो

गणतंत्र दिवस के बहाने....
कुछ याद उन्हें भी कर लो
--विभाष कुमार झा
जुल्मे- ला इन्तेहाँ से तंग आकर, आदमी चाहता है आजादीहोके आज़ाद फिर वो दूसरों की, छीनना चाहता है आजादी
अपने दौर के जाने-माने शायर जोश मलीहाबादी की ये पंक्तियाँ भले ही भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों में लिखी गई होंगी, लेकिन आज के हालात पर भी ये पंक्तियाँ उतनी ही मौजूं हैं, जितनी उस दौर में थीं. यकीनन आज देश एक बार फिर किसी और अर्थ में गुलामी की जकड़न में कैद होता जा रहा है. भारत देश को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र राष्ट्र बने अब पूरे बासठ बरस हो चुके हैं. इन बासठ वर्षों में हमने एक देश के रूप में जो पाया और विकास के सप्नूं को पूरा करने में हम जहां तक पहुंचे , उसे देखकर यह लगता है कि हम अभी भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे हैं. देश में जिस तरह से मंहगाई दिनों-दिन बेताहाशा बढ़ रही है और जिस तेजी से भ्रष्टाचार अपनी जड़ें पसार रहा है, उससे दुनिया भर में भारत की छवि निश्चित रूप से खराब हो रही है. चाहे बात राष्ट्रमंडल खेलों की हो या आदर्श हाऊसिंग घोटाले की या फिर टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की, हर मामले में सता और पूंजीपतियों के साथ उद्योग घरानों का खतरनाक मेल-जोल आम आदमी को बेहद निराश करने वाला है. जिस तरह से पैसे के जोर पर पूरी सता को अपने हित में इस्तेमाल करने का खेल चल रहा है, उससे ऐसा लगता है की अब इस देश में आम माध्यम वर्ग या निछले तबके के लिए आशा की कोई किरण शायद ही कहीं से फूटे. इस कुंठित करने वाली परिस्थिति के बीच जो व्यक्ति केवल अपने कुछ हज़ार रुपये के वेतन केसहारे घर परिवार का भरण पोषण करने की चिंता में दिन रात मेहनत कर रहा है, उसके लिए उम्मीद की कोई रौशनी दूर दूर तक नजार नहीं आती. हर तरह से लचर परेशान और आर्थिक तंगी का शिकार व्यक्ति ऐसे में अगर सता के खिलाफ विद्रोही हो जाए तो भला इसमें कैसा आश्चर्य?. अखबारों में अब हम भ्रष्टाचार की ख़बरों को पढ़कर पहले की तरह उद्वेलित नही होते. एक समय था जब केवल ६० करोड़ के बोफोर्स घोटाले ने केंद्र की सता को पलट दिया था. अब हज़ारों करोड़ के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद भी सता को अनच तक नहीं आती. क्योंकि इस खेल में मीडिया के कुछ लोग भी कठपुतली बनकर खेलने को उतावले हो गए हैं. पिछले दिनों जो टेप उजागर हुए हैं, उनमे हुई बातचीत से तो यही लगता ही अब इस देश में रक्षक ही भक्षक बनने को बेताब हो रहा है. कवि गोपालदास नीरज ने बरसों पहले लिखा था- जो लूट लें कन्हार ही दुल्हन की पालकी हालत ये आज है मेरे हिन्दुस्तान की यह कितनी शर्म की बात है कि आज़ाद देश में रहते हुए भी हमें आज एक बार फिर उन्ही पंक्तियों को दोहराना पड़ रहा है. लेकिन यह बात भी सच है कि देश के आम नागरिकों के धैर्य की अंतिम सीमा अब समाप्त होने को है, और जैसे ही यह सीमा समाप्त होगी, देश में युवा वर्ग एक बार फिर क्रांतिकारी बदलाव के लिए कमर कस कर आगे आयेगा जरूर. बस उस घड़ी का ही इंतज़ार है....
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