tag:blogger.com,1999:blog-87980033725559005082024-02-19T08:57:40.233-08:00VIBHASH KUMAR JHA, JOURNALISTI am a journalist for over 20 years in both Hindi& English. Associated with All India Radio (anchor, cricket commentator,script writer of drama & serials, news reader)with Doordarshan for news editing.Won four national awards & fellowships,including this year's SAROJINI NAIDU NATIONAL JOURNALISM AWARD. Worked for Hindustan Times,Hitavada,MP Chronicle for 15 years, Amrit Sandesh, Nava Bharat, Swadesh. Doing Ph.D.Hobbies-writing & reading Urdu,Hindi poetry.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.comBlogger73125tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-15440180481290953382013-05-06T00:51:00.002-07:002013-05-06T00:51:41.681-07:00हैट्रिक की उम्मीद में यात्रा पर निकले डॉ. रमन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<b><u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 22.0pt; line-height: 115%;">हैट्रिक की उम्मीद
में यात्रा पर निकले डॉ. रमन </span></u></b><b><u><span style="font-size: 24.0pt; line-height: 115%;"></span></u></b></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">देशाटन और तीर्थाटन
की सदियों पुरानी परम्परा वाले इस प्रदेश में एक और यात्रा शुरू हो गई है. अब यह
बात अलग है कि प्रदेश के मुखिया डॉ रमन सिंह की इस यात्रा को विकास यात्रा का नाम
दिया गया है. वैसे राजनीतिक हलकों में यूं भी माना जा रहा है कि वास्तव में यह कांग्रेस
की परिवर्तन यात्रा के जवाब में निकाली गई यात्रा है, जिसके जरिये मुख्यमंत्री
सत्ता में हैट्रिक की उम्मीद को पुख्ता करना चाहते हैं. वजह एक हो या एक से
अधिक, इतना तो साफ दिखाई देता है कि सत्ताधारी
भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच अब चुनावी जंग छिड़ चुकी है.</span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">विकास की राजनीति का
दावा करने वाले डॉ रमन सिंह ने पिछले दिनों भाजपा कार्यसमिति की बैठक में
अपने कार्यकर्ताओं के बीच पूरे
आत्मविश्वास से कहा था कि चाहे कांग्रेस की जानिब से कोयला घोटाला, खनिज पट्टा,
एनीकट निर्माण या दीगर मामलों में कितने ही आरोप लगाए जाएँ, पार्टी को डरने की
जरुरत नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने किसी भी मामले में नियम प्रक्रिया के तहत
कि काम किया है. इन आरोपों से अलग एक बात यह भी काबिले-गौर है कि हमारे देश की
जनता बुनियादी तौर पर आस्था को विवेक से ऊपर रखती है. यहाँ किसी भी व्यक्ति को परखने
से पहले उसकी नीयत देखी जाती है. मुख्यमंत्री अक्सर यह दावा करते हैं कि वे विकास
की राजनीति करना चाहते हैं, आरोपों की नहीं. इस बार जनता की बीच जाने से पहले उनकी
सरकार ने बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा, युवाओं के लिए मुफ्त लैपटाप और
टैबलेट वितरण योजना और भारत-दर्शन योजना, धान खरीदी पर बोनस और पंचायत शिक्षाकर्मियों
के लिए नियमित शिक्षकों के समान वेतन- जैसी अनेक घोषणाएं की हैं. सरकार में रहने
का इतना लाभ तो हर दल को मिलता ही है, कि वह अपने मतदाताओं का विश्वास जीतने के
लिए उनके अनुसार कोई योजना शुरू करे और फिर उसी के सहारे सत्ता में वापसी का मार्ग
भी प्रशस्त करे. सभी सरकारें यही करती हैं. केन्द्र में यू.पी.ए. सरकार भी इसी कवायद में
जुटी हुई है. </span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">इस नजरिये से देखा
जाए तो विकास यात्रा पर निकलना रमन सरकार की हिम्मत को भी दर्शाता है कि वे
अपनी योजनाओं और फैसलों पर जनता से प्रतिपुष्टि
(फीडबैक) प्राप्त करना चाहते हैं. किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार के लिए जनसंपर्क
अभियान, उसके कामकाज को परखने का, निहायत ही जरूरी पहलू होता है. अगर रमन सिंह यह
जानना चाहते हैं कि उनकी सरकार की विभिन्न योजनाओं और फैसलों पर प्रदेश की जनता
क्या सोचती है,तो इसमें हाय-तौबा मचाने की कोई तार्किक वजह नजर नहीं आती. ऐसा भी
नही है कि राज्य सरकार पहली बार किसी यात्रा पर निकल रही हो. हर साल गर्मी के
दिनों में ग्राम संपर्क अभियान चलाया जाता रहा है. इस बार तो नगर संपर्क अभियान भी
चलाया गया. बेशक, कांग्रेस के नेताओं ने कल ही चेताया था कि रमन सरकार को विकास
यात्रा के दौरान जनता के विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है. अगर ऐसा है, तो इसमें
भी गलत क्या है ? जनता को कोई योजना ठीक नहीं लगी होगी, तो जनता उस पर अपनी प्रतिक्रिया
देने के लिए स्वतंत्र है. और फिर रमन सिंह इसी
प्रतिक्रिया को जानने के लिए ही तो विकास यात्रा पर निकले हैं. हर जगह, हर
व्यक्ति, किसी भी सरकार की हर-एक योजना को पसंद ही करे, यह जरुरी तो नहीं. ऐसे में
डॉ रमन सिंह, चुनाव के थोडा पहले, इस विकास यात्रा के जरिये जनता का मन टटोलने कि
कोशिश कर रहे हैं. आगे जो भी प्रतिक्रिया मिलेगी, उसके अनुसार संभव है कि सरकार के
कुछ फैसलों में तब्दीली भी करनी पड़े. जनता की जरुरत के लिए ऐसा करना पड़े, तो अवश्य
किया जाना चाहिए. इसमें सरकार को किसी तरह का संकोच नहीं होना चाहिए. विकास यात्रा
के सन्दर्भ में, या यूं कहिये कि किसी नए कार्य के लिए, महात्मा गाँधी का सूत्र
वाक्य यहाँ बहुत मौजूं मालूम पड़ता है. वे
कहते थे- हर नए काम कि शुरू में उपेक्षा
होती है. फिर भी वह काम जारी रहे, तो उसकी आलोचना होती है. इसके बाद भी काम जारी
रहे, तो उसका विरोध होता है. जब इतने के बाद भी काम बंद नहीं हो, तो फिर मजबूर
होकर लोगों को उसे स्वीकार करना ही पड़ता है. दो बार चुनाव जीतने वाले डॉ रमन सिंह का संकल्प निश्चित रूप से बहुत
प्रबल होगा- इसमें कोई संदेह नहीं. शायद उनके मन में कुछ ऐसे ही भाव उमड़ रहे
होंगे, जो इन पंक्तियों में बयान होता है- </span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal">
<b><i><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">हमने ये शाम चिरागों
से सजा रखी है</span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></i></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><i><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">शर्त लोगों ने हवाओं
से लगा रखी है</span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></i></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><i><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;">अंजाम की फ़िक्र तो
हम भी कहाँ करते हैं </span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></i></b></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;"><b><i>हमने भी जान हथेली
पे उठा रखी है</i></b> </span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18.0pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-size: 20.0pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-84787663985550556152013-04-30T00:28:00.004-07:002013-04-30T00:28:44.898-07:00छत्तीसगढ में मनरेगा--अब इस सफलता को तो ‘राजनीतिक’ नहीं कह सकते....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><u><span style="font-family: Mangal, serif; line-height: 21px;">छत्तीसगढ को </span><span style="font-family: Mangal, serif; line-height: 21px;">मनरेगा में देश में मिला </span><span style="font-family: Mangal, serif; line-height: 21px;">दूसरा स्थान</span></u></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><u><span style="font-family: Mangal, serif; line-height: 21px;"><br /></span></u></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><span style="font-size: x-large;">अब इस सफलता को तो ‘राजनीतिक’
नहीं कह सकते.</span></span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">... </span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">छत्तीसगढ को महात्मा
गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को लागू करने वाले सफल राज्यों की सूची में
दूसरा स्थान मिला है. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के लिए फिर एक नई मुश्किल खडी हो
गई है. परिवर्तन यात्रा और घर-घर कांग्रेस
अभियान में इन दिनों कांग्रेस के पदाधिकारी राज्य सरकार को कोस-कोस कर गाली दे रहे
हैं. राज्य सरकार पर कोयला घोटाले सहित अनेक आरोप भी लगा रहे हैं.</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">लेकिन जैसे ही
कांग्रेस के नेता राज्य सरकार पर आरोपों का सिलसिला शुरू करते हैं. उन्ही की
केन्द्र सरकार, छत्तीसगढ़ में किसी न किसी केन्द्रीय योजना को लेकर रमन सरकार की
पीठ थपथपा देती है. अब इसे क्या कहा जाये. भावावेश में कुछ लोग कहेंगे- रमन सिंह
मुकद्दर के सिकंदर हैं. कुछ की दलील होगी- रमन सिंह ने केन्द्रीय मंत्रियों से निजी
जनसंपर्क बहुत अच्छा मेन्टेन किया है. कुछ कांग्रेसी नेता अपने बड़े नेताओं और मंत्रियों
के खिलाफ सीधे नाराजगी नहीं दिखा पाएंगे तो कहेंगे, राज्य सरकार ने केन्द्र को गलत
आंकड़े प्रस्तुत करके यह सम्मान हासिल किया है. पहले भी केन्द्र की कुछ और योजनाओं
पर मिली सफलता के लिए कांग्रेस की जानिब से यही तर्क दिया जा चुका है. इसलिए इस
बार भी कुछ ऎसी ही प्रतिक्रिया आने की उम्मीद है. </span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">सवाल यह नहीं है कि
रमन सरकार ने केन्द्र की किसी योजना को अच्छे ढंग से लागू करते हुए, अपने विरोधी
दल की सरकार से कैसे वाहवाही लूट ली. बल्कि इस सवाल से भी बड़ी बात यह है कि राज्य
में इस समय विकास की योजनाओं पर सूचना तकनीकी का इस्तेमाल बखूबी किया जा रहा है. चिप्स
की मदद से इसे अंजाम दिया गया है, और इस तरह गडबडी को न्यूनतम रखने के प्रयास किये
गए हैं. शिकायत पर तुरंत कार्रवाई भी होती है. इससे निचले स्तर से मंत्रालय स्तर
तक एक एक पल की निगरानी हो पा रही है. मनरेगा में भी छत्तीसगढ को आदर्श राज्य
मानकर यू. पी.ए. सरकार ने पहले भी राष्ट्रीय विकस परिषद की बैठकों में अन्य
राज्यों के मुख्यमंत्रियों को यह सुझाव दिया था कि वे अपने यहाँ भी छत्तीसगढ के ढांचे
को लागू करें. इस बार भी छत्तीसगढ को मनरेगा में देश भर में दूसरा स्थान मिला है. यह कामयाबी पिछले पांच साल
में इस योजना के तहत किये गए सभी कार्यों के सम्मिलित मूल्यांकन के अधर पर मिली है.
यानि, बकौल केन्द्र सरकार- पिछले पांच साल में छत्तीसगढ ने मनरेगा में बेहतरीन काम
किया है. आंकड़ों की जुबानी इसे यूं साबित किया जा सकता है कि –राज्य में मनरेगा के
तहत पांच सालों में तीन लाख इक्यानबे हजार दो सौ पैतीस कार्य पूरे किये गए हैं.
खास बात यह है कि इसमें से एक लाख इक्कीस हजार कार्य आदिवासी बहुल इलाकों में किये
गए. इस आंकड़े से यह भी साबित होता है कि राज्य सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में
ही करीब चालीस प्रतिशत कार्य कराये हैं. </span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">इस कामयाबी का सीधा
असर अभी भाजपा और कांग्रेस के चुनावी अभियान पर भी पडेगा. अब जब कांग्रेस का घर घर
अभियान चलेगा तो प्रदेश के नेता राज्य सरकार पर यह आरोप नहीं लगा पाएंगे कि छत्तीसगढ
में केन्द्र की राशि का सदुपयोग नहीं हो पाता. उधर भाजपा भी अपने चुनावी अभियान
में इस बात को गर्व से बताएगी कि राज्य में कांग्रेस के नेता जो भी आरोप लगाएं, यह
तो उनकी मजबूरी है. लेकिन सच्चाई तो यही है कि उन्ही की सरकार से राज्य को लगातार
तारीफ मिल रही है. ऐसे में प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं का भाजपा के खिलाफ अभियान
निश्चित ही कमजोर पड़ेगा. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जब छः मई से विकास
यात्रा शुरू करेंगे तो तो कांग्रेसी आरोपों
के जवान में यू. पी.ए. सरकार से मिले तारीफ़ के तमगे को जोर-शोर से दिखाएँगे. तब
कोई यह भी नहीं कह पायेगा कि यह कामयाबी ‘’राजनीतिक’’ है. </span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 16.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">------</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 14.0pt;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 115%;"> </span></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-84352750640807997922013-04-28T00:24:00.000-07:002013-04-28T00:50:13.940-07:00आज ‘’धान के कटोरे’’ की चमक देखेगी सारी दुनिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><br /></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">आज ‘’धान के कटोरे’’ की चमक देखेगी सारी दुनिया
</span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">प्रदेश में हर तरफ सनसनी छाई हुई. कहने
को बहुत कुछ है. प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकल रही है. प्रदेश के
मुखिया हैट्रिक की उम्मीद के पंख लगाकर विकास यात्रा पर निकलने वाले हैं. हजारों शिक्षाकर्मी
तनख्वाह बढ़ने का जश्न मना रहे हैं. इन सब ख़बरों के बीच भी रायपुर जैसे ठहर जाने को
बेताब है. अभी किसी को कुछ और नहीं सूझ रहा है. मंत्री, अधिकारी, मोहल्ले के नेता
और युवा पदाधिकारियों, छात्रों या फिर राह चलते किसी से भी इन दिनों आप और किसी बड़े,
जरुरी या गंभीर मुद्दे पर बात ही नहीं कर सकते. कुछ पूछो तो एक ही रटा-रटाया जवाब
आता है- “आई.पी.एल. के बाद”.</span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">क्या जुनून है, और हो भी क्यों न? आई.पी.एल.
मतलब- घनी रात के बीच, कृत्रिम श्वेत-धवल रोशनी में क्रिकेट; नृत्य और ठुमके के
साथ खूबसूरत अदाओं की बिजली गिराने वाली चीयर गर्ल्स; रंगीन कपड़ों में मैदान पर
चौके-छक्के जड़ने वाले ‘’सितारा’’ की हैसियत रखते खिलाडी, कमेंटेटर की भूमिका में
नजर आती कालर-बोन दिखाने वाली नव-यौवना माडल और मैदान पर फील्डिंग करते खिलाड़ी से
लाईव (सीधी) बात करते हुए एंकर. भला एक साथ इतना रोमांच और कहाँ मिलता है? पैसे की
चमक और खनक से सांस लेने वाले बाज़ार की टकसाली जुबान में इसे ही तो कहते हैं- पैसा
वसूल. </span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">अभी तक यही सब कुछ हम सब केवल टेलीविजन
के परदे पर ही देख रहे थे. लेकिन आज छत्तीसगढ़ में इतिहास लिखा जा रहा है. कौतूहल से
लबरेज और परी-कथाओं की कल्पना से भी खूबसूरत ग्लैमर का रंगमंच, यानी आई.पी. एल. तिलस्मी जादू आज समूचे
छत्तीसगढ पर छा चुका है. </span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">कभी हाकी की नर्सरी की पहचान रखने वाला छत्तीसगढ
आज क्रिकेट के खुमार में डूबा हुआ है. अभी तक जिस राज्य की स्वतंत्र रणजी टीम नहीं
बन पाई है, वही छत्तीसगढ आज आई.पी.एल. जैसे अहम चैम्पियनशिप का गौरवशाली आयोजन कर रहा है. मुख्यमंत्री
और उनके मंत्री-अधिकारी के साथ क्रिकेट संघ और प्रशासन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर
लगी हुई है. वाकई, क्रिकेट के अवतार और ग्लोबल ब्रांड सरीखे नामी करीब पचास खिलाडी,
दो से तीन हजार अंतरराष्ट्रीय हस्तियों का क्रिकेट परिवार और कारपोरेट कल्चर के नव-धनाड्य
नुमाइंदे- ये सभी आज उसी रायपुर में जमा हो रहे हैं, जिसे कभी पिछड़े कहे जाने वाले छत्तीसगढ की देहात जैसी
बस्ती का उपनाम दिया जाता था. यकीनन, समय करवट ले रहा है. छत्तीसगढ को अब खेल से प्रतिष्ठा
और मुकाम दोनों मिल रहा है. आज के बाद रायपुर वैसा नहीं रह जायेगा, जैसा वह अब तक
रहा है. मुख्यमंत्री और उनका सरकारी तंत्र सभी इस लम्हे को यादगार बनाने के लिए रात-दिन
एक किये हुए हैं. हो सकता है कि बहुतों के लिए रायपुर में आई.पी.एल. मैचों का आयोजन एक तमाशे से ज्यादा और कुछ न हो,
लेकिन राज्य के बहुत बड़े हिस्से के लिए यह जीने-मरने के सवाल से भी कहीं कमतर नहीं
है- गोया, उनकी जुबान पर इस वक्त यही अलफ़ाज़ अंगडाइयां ले रहे होंगे कि - </span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"> </span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">तुझे क्या सुनाऊँ ऐ दिलरुबा, तेरे सामने
मेरा हाल है.</span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">तेरी इक निगाह की बात है, मेरी ज़िंदगी का
सवाल है </span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">------</span></b><b><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-63770291166142674612013-04-27T00:52:00.001-07:002013-04-27T00:52:49.001-07:00शिक्षाकर्मियों को मुद्दा बनाने की ख्वाहिश भी रह गई अधूरी..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 18.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 18.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">शिक्षाकर्मियों को मुद्दा
बनाने की ख्वाहिश भी रह गई अधूरी....</span><o:p></o:p></b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">शिक्षाकर्मियों के
मुद्दे पर पिछले पांच महीनों से विपक्ष की आलोचना झेल रही राज्य सरकार ने आखिरकार
कांग्रेस से यह मुद्दा भी छीन लिया. कल देर रात मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने जिस
तरह मुख्यसचिव की अध्यक्षता में तुरंत बैठक बुलाकर रिपोर्ट मांगी और फिर वहीं
घोषणा भी कर दी, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजनीति में रमन सिंह की चाल
सबसे अलग होती है. अभी कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस ने शिक्षाकर्मियों के मुद्दे पर
एक से बढ़कर एक दावे किये थे. यहाँ तक कि आंदोलन में भी अजित जोगी, नन्दकुमार पटेल
और रविन्द्र चौबे ने भी आन्दोलन में शामिल होकर पूरी ताकत से यह कहा था उनकी सरकार
आते ही शिक्षाकर्मियों का संविलयन किया जायेगा और उन्हें छठा वेतनमान भी दिया
जायेगा. जोगी ने अपने लहजे में वचन दिया कि कांग्रेस की सरकार बनते ही वे पहला
दस्तखत शिक्षाकर्मियों के संविलयन के आदेश पर करेंगे. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">उस समय
शिक्षाकर्मियों के आंदोलन को प्रशासन से कुचलने के आरोप भी लगे. इसका विरोध भी
हुआ. ढाई महीने से चला आ रहा आंदोलन अचानक वापस ले लिया गया. आन्दोलन की वापसी के
तरीके पर भी कई सवाल किये जाने लगे. लोगों
में ऐसी चर्चा भी थी कि शिक्षाकर्मियों का आन्दोलन चलाने वालों ने कुछ बड़े नेताओं
से निजी लाभ ले लिया होगा. इससे भी जनता में राज्य सरकार के प्रति गहरी नाराजगी
देखी गई. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कांग्रेस को लगा था
कि दो लाख शिक्षाकर्मियों के आन्दोलन में शामिल होने से अगले चुनाव में एक बड़ा
मुद्दा हाथ लग सकता है और आगामी विधानसभा
चुनाव के परिणाम को भी अपने पक्ष में पलटा जा सकता है. दूसरी तरफ भाजपा सरकार के
रणनीतिकार यह सोच रहे थे कि यदि आन्दोलन को खत्म कराकर उसी समय मांग पूरी कर दी जाती,
तो कांग्रेस इसका श्रेय लूट ले जायेगी और तब भी चुनाव में भाजपा को ही नुकसान होगा.
मांग नही पूरी करने पर शिक्षाकर्मियों के साथ-साथ जनता भी राज्य सरकार को –जनविरोधी-
मान बैठेगी. ऐसे में उस वक्त आंदोलन को खत्म कराना ही एकमात्र उपाय लगा. सरकार ने
सख्ती दिखाते हुए हजारों शिक्षाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया और सबका गुस्सा भी मोल ले लिया. भला हो
कि निराश होकर शिक्षाकर्मियों ने खुद ही बुझे मन से आंदोलन खत्म कर दिया. लेकिन डॉ
रमन सिंह शायद उस आंच के ठन्डे होने का इन्तजार कर रहे थे. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">इस बीच एक नए
सम्झौताकार के रूप में राजनांदगांव के सांसद मधुसूदन यादव भी परदे पर उभरने लगे.
उन्होंने दो- तीन बार शिक्षाकर्मियों की सरकार से बात कराई. पहले उन्होंने
बर्खास्त शिक्षाकर्मियों को बहाल कराने का रास्ता खोला. माहौल अनुकूल होते ही उन्होंने
बाक़ी मांगों पर भी पहल की. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अब जबकि चुनाव नजदीक
आ रहे हैं और मुख्यमंत्री को आगामी ६ मई से विकास यात्रा भी शुरू करनी है. इस बीच
कांग्रेस ने १२ अप्रैल से शुरू हुई अपनी परिवर्तन यात्रा में इस मुद्दे को पहले ही
प्रमुखता से उठाना शुरू कर दिया था. समय
की नब्ज को भांपते हुए रमन सिंह ने कल ही मुख्य सचिव की समिति से रिपोर्ट
देने को कह दिया और कल ही उस पर मुहर भी लगा दी.</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">इस बीच प्रदेश के
कुछ कर्मचारी नेताओं ने भी शिक्षाकर्मियों के पदाधिकारियों को साफ़ तौर पर समझाने
का प्रयास किया कि पंचायत भर्ती अधिनियम के मौजूदा स्वरुप में संविलयन बिलकुल नामुमकिन
है. हाँ अगर सरकार चाह्हे तो इस कानून में संशोधन करने के बाद संविलयन कि व्यवास्ता
हो सकती है. इस लिहाज से यह भी कहा जा सकता है कि चुनाव के पहले भाजपा के घोषणा
पत्र में संविलयन का वादा भी तकनीकी रूप से सही नही था. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">आखिरकार रमन सिंह ने
तमाम स्थितियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षाकर्मियों के वेतन को सम्मानजनक स्तर
तक पहुँचाने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी. कल रात इस पूरी प्रक्रिया के लिए सरकार
ने तो तेजी दिखाई, उससे यह भी समझा जा सकता है कि अगर सरकार कुछ करना चाहे तो उसे
अपने ही बनाये नियमों के तहत ऐसा करने से भला कौन सी ताकत रोक सकती है. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">यूं भी
शिक्षाकर्मियों का तनख्वाह बढाने की मांग हर नजरिये से जायज थी. पिछले तीन-चार
सालों के दौरान केन्द्र सरकार ने लगभग सभी आवश्यक चीजों के दाम बढाए हैं. ऐसे में
केवल छः से दस हजार रुपयों में महीने भर का घर-खर्च चलाना, वास्तव में तलवार की
धार पर चलने जैसा कठिन काम हो गया है. रमन सरकार ने लाखों आंदोलनकारियों की इस
तकलीफ को समझते हुए, ठीक समय पर फैसला लेकर, एक तरह से, विरोध की दबी हुई चिंगारी
को शांत करने का ही प्रयास किया है. खास तौर पर तब, जबकि, पिछले महीने ही विधायकों
और मंत्रियों की तनख्वाह में हजारों रुपये की बढोत्तरी की गई है. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">ऐसे में यदि दस हजार
रुपये में अपना घर चलाने वाले लाखों शिक्षाकर्मियों की मांगों पर कुछ नहीं किया जाता,
तो इस आक्रोश से, सत्ता में लौटने की हैट्रिक लगाने की अभिलाषा भी प्रभावित हो
सकती थी. सरकार ने जो कदम उठाये हैं, उससे
न सिर्फ कांग्रेस के हाथ से एक पका-पकाया चुनावी मुद्दा भी फिसल गया है, बल्कि राज्य
सरकार लोगों की इस शिकायत से भी बच गई कि.. </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="tab-stops: center 3.25in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><b><u>किसी के एक आंसू पर हजारों दिल तडपते हैं </u></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><b><u>किसी का उम्र भर
रोना यूं ही बेकार जाता है </u></b> </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">--------------------</span></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-13571095981098962232011-02-16T22:49:00.000-08:002011-02-16T22:51:20.320-08:00कुछ याद उन्हें भी कर लोगणतंत्र दिवस के बहाने....<br />कुछ याद उन्हें भी कर लो <br />--विभाष कुमार झा<br /> जुल्मे- ला इन्तेहाँ से तंग आकर, आदमी चाहता है आजादीहोके आज़ाद फिर वो दूसरों की, छीनना चाहता है आजादी<br /> अपने दौर के जाने-माने शायर जोश मलीहाबादी की ये पंक्तियाँ भले ही भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों में लिखी गई होंगी, लेकिन आज के हालात पर भी ये पंक्तियाँ उतनी ही मौजूं हैं, जितनी उस दौर में थीं. यकीनन आज देश एक बार फिर किसी और अर्थ में गुलामी की जकड़न में कैद होता जा रहा है. भारत देश को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र राष्ट्र बने अब पूरे बासठ बरस हो चुके हैं. इन बासठ वर्षों में हमने एक देश के रूप में जो पाया और विकास के सप्नूं को पूरा करने में हम जहां तक पहुंचे , उसे देखकर यह लगता है कि हम अभी भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे हैं. देश में जिस तरह से मंहगाई दिनों-दिन बेताहाशा बढ़ रही है और जिस तेजी से भ्रष्टाचार अपनी जड़ें पसार रहा है, उससे दुनिया भर में भारत की छवि निश्चित रूप से खराब हो रही है. चाहे बात राष्ट्रमंडल खेलों की हो या आदर्श हाऊसिंग घोटाले की या फिर टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की, हर मामले में सता और पूंजीपतियों के साथ उद्योग घरानों का खतरनाक मेल-जोल आम आदमी को बेहद निराश करने वाला है. जिस तरह से पैसे के जोर पर पूरी सता को अपने हित में इस्तेमाल करने का खेल चल रहा है, उससे ऐसा लगता है की अब इस देश में आम माध्यम वर्ग या निछले तबके के लिए आशा की कोई किरण शायद ही कहीं से फूटे. इस कुंठित करने वाली परिस्थिति के बीच जो व्यक्ति केवल अपने कुछ हज़ार रुपये के वेतन केसहारे घर परिवार का भरण पोषण करने की चिंता में दिन रात मेहनत कर रहा है, उसके लिए उम्मीद की कोई रौशनी दूर दूर तक नजार नहीं आती. हर तरह से लचर परेशान और आर्थिक तंगी का शिकार व्यक्ति ऐसे में अगर सता के खिलाफ विद्रोही हो जाए तो भला इसमें कैसा आश्चर्य?. अखबारों में अब हम भ्रष्टाचार की ख़बरों को पढ़कर पहले की तरह उद्वेलित नही होते. एक समय था जब केवल ६० करोड़ के बोफोर्स घोटाले ने केंद्र की सता को पलट दिया था. अब हज़ारों करोड़ के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद भी सता को अनच तक नहीं आती. क्योंकि इस खेल में मीडिया के कुछ लोग भी कठपुतली बनकर खेलने को उतावले हो गए हैं. पिछले दिनों जो टेप उजागर हुए हैं, उनमे हुई बातचीत से तो यही लगता ही अब इस देश में रक्षक ही भक्षक बनने को बेताब हो रहा है. कवि गोपालदास नीरज ने बरसों पहले लिखा था- जो लूट लें कन्हार ही दुल्हन की पालकी हालत ये आज है मेरे हिन्दुस्तान की यह कितनी शर्म की बात है कि आज़ाद देश में रहते हुए भी हमें आज एक बार फिर उन्ही पंक्तियों को दोहराना पड़ रहा है. लेकिन यह बात भी सच है कि देश के आम नागरिकों के धैर्य की अंतिम सीमा अब समाप्त होने को है, और जैसे ही यह सीमा समाप्त होगी, देश में युवा वर्ग एक बार फिर क्रांतिकारी बदलाव के लिए कमर कस कर आगे आयेगा जरूर. बस उस घड़ी का ही इंतज़ार है.... <br />--------------------------------------------Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-10460997814271217942010-06-27T10:19:00.000-07:002010-06-27T10:39:54.420-07:00क्या नियम सिर्फ बेवकूफों के लिए ही होते हैं ?<br /><br /> अभी पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार की ख़बरें बहुत अधिक सुनी और पढी जा रही हैं। दो महीने पहले तक राज्य सरकार के कृषि विभाग में प्रमुख सचिव और पूर्व स्वास्थ्य सचिव बी एल अग्रवाल के कथित भ्रष्टाचार के कारनामों से अखबारों के पन्ने भरे होते थे। यहाँ तक कहा गया कि उनके चार्टर्ड एकाउंटेंट ने दो सौ चालीस से ज्यादा फर्जी नामों से खाते खुलवाए थे। इनमे करीब तीन सौ करोड़ रुपये की गड़बड़ी की बात उजागर हुई थी। लेकिन थोड़े समय तक निलंबित रहने के बाद एक बार फिर यही अध्दिकारी अपनी नौकरी बहाल कराने में कामयाब रहे।<br /> मुझे और मेरे कुछ मित्रों को यह समझ में नहीं आया कि यदि छापे की कार्रवाई सही थी तो फिर बाद में इनके खिलाफ एक भी पर्याप्त सबूत कैसे नहीं मिले और कमजोर केस होने के कारण अधिकारी को अंततः बहाल होना पडा। दूसरी तरफ यदि छपे के पीछे पुख्ता प्रमाण मौजूद थे तो फिर आगे कारवाई क्यों नहीं हुई ?<br /><br /> कुछ समय पहले एक प्रभावशाली विधायक के भाई के घर छापे में करीब दस करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति मिली थी। आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो ने छापा भी मारा। लेकिन बाद में पाता चला कि उस व्यक्ति के खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई।<br /> अभी भाजपा और कांग्रेस के कुछ स्थानीय पदाधिकारियों के ठिकानों पर आयकर विभाग छापे की कार्रवाई कर रहा है। इस बार भी शहर में आम चर्चा यही है कि थोड़े दिन अखबार और अन्य मीडिया में छपी ख़बरें चटखारे लेकर छापी जायेंगी। उसके बाद लोग इस बात को भूल जायेंगे। तब पार्टी और प्रशासन इन बदनाम हो चुके लोगों को अपना पक्ष रखने का अवसर देगा. fiलहाल इससे निजात मिलती हुई दिखाई नहीं देती । <br /><br /><br /><br /><br /> बशीर बद्र के शेर का दूसरा मिसरा याद आ रहा है<br /><br />बेगुनाह कौन है इस शहर में कातिल के सिवा ?Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-24379208797944093212010-01-05T20:17:00.000-08:002010-01-05T20:20:01.856-08:00जिस शाख पे बैठे हो, वो टूट भी सकती ..<strong>छत्तीसगढ़ में नगरीय चुनाव परिणाम के निहितार्थ--<br /></strong> <span style="font-size:180%;">जिस शाख पे बैठे हो, वो टूट भी सकती .. <br /><br /></span> छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को राजधानी रायपुर सहित राजनांदगांव और बिलासपुर के महापौर पद के निर्वाचन में करारी हाल का सामना करना पडा. इस फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि अब छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को अपने शासन के तौर तरीके में समय रहते बदलाव लाना होगा. अन्यथा मतदाता का मन बदलते देर नहीं लगेगी. हारने पर आत्मनिरीक्षण और जीतने पर जश्न की प्रतिक्रिया तो हर चुनाव के बाद मिल ही जाती है. यहाँ इसके कुछ आगे की बात पर विचार करना है. यह सच है कि स्थानीय चुनाव में मुद्दे वैसे नहीं होते जैसे, विधान सभा या लोक सभा चुनाव में होते हैं. स्थानीय चुनाव में व्यक्ति की अपनी छवि भी अहम् होती है. परती चाहे कोई भी हो, मतदाता ने यह बात बड़ी शिद्दत से महसूस की, कि अक्सर पार्षद या महापौर पद के विजेता उम्मीदवार पद पर आते ही पहला कार्य पैसा कमाने का करते हैं. कल तक साधारण से मकानों में रहने वाले कुछ पार्षद अगर पांच साल में ही लखपति (कुछ लाख रूपये की संपत्ति वाले) बन जाएँ, तो मतदाता को यह साफ़ दिखाई देने लगता है कि अमुक पार्षद ने वार्ड का नहीं, बल्कि अपना ही विकास किया है. इसी तरह महापौर पद के उम्मीदवार से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह शहर को आशा के अनुरूप विकास के रास्ते पर ले जाने की कल्पना को साकार करे. लेकिन यहाँ भी जब उसे निराशा मिले तो वह अपना ब्रह्मास्त्र चलाने से नहीं चूकता. रायपुर को धूलमुक्त शहर बनाने का वादा पिछले चुनाव में किया गया था. पांच साल में शहर से धूल तो नहीं हटा, उलटे रायपुर को देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर का सम्मान (?) जरुर मिल गया. ऐसे में मतदाता के पास नए विकल्प को तलाशने के सिवाय कोई सहारा ही नहीं रह जाता. अगर नए विजेता उम्मीदवारों ने भी केवल कथनी को ही तेज रखा और पिछले उम्मीदवारों की नाकामी से सबक नहीं लिया तो आने वाले चुनाव में इनका अंजाम भी आज के पराजित उम्मीदवारों की तरह ही होगा, यह निश्चित है.<br />दुर्भाग्य यही है कि लोकतंत्र में अधिकांश विजेता प्रत्याशी अभी तक लोकतंत्र को जीवन शैली में उतारने में पूरी तरह से असफल रहे हैं. इसीलिए एक बार चुनाव जीतने पर खुद को हिटलर, सिकंदर और संभवतः चक्रवर्ती सम्राट भी समझने लगते हैं. बस यहीं से उनकी हर सफलता, आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी असफलता के रूप में उन्ही के सामने खडी होने लगती है. पांच साल के लिए मिली जीत को एक अच्छा अवसर मानकर जो उम्मीदवार कार्य करेगा, उसके लिए जीत का सिलसिला बनाये रखना कोई कठिन कार्य नहीं रह जायेगा. लेकिन बहुत से लोगों को इतनी बेसब्री रहती है- कि अगली बार कहीं मेरी सीट का आरक्षण न बदल जाये, या अगली बार मेरी टिकट न कट जाये- यह सोचकर वे पहली पारी में ही, सात पीढ़ियों के लिए अपना घर भर लेना चाहते हैं. इस प्रवृत्ति से बच गए तो फिर बड़ी कामयाबी भी खुद-ब-खुद क़दमों में आ सकती है.<br />सबसे बड़ी बात यही है कि, न तो एक चुनाव में हार जाने से भाजपा के लिए "दुनिया" ख़त्म हो गयी है, और न ही एक नगरीय चुनाव में महापौर के तीन अहम पद जीतने पर कोंग्रेस को हमेशा के लिए कोई "स्वर्ण सिहांसन" मिल गया है. अगर इस क्षणिक सफलता से विजेताओं को अपना दिमाग ख़राब नहीं करना हो, और पराजित प्रत्याशियों को एक बार की असफलता से निराशा होकर, गम के अँधेरे में गुम होने से बचना हो, तो जनाब बशीर बद्र का यह शे'र वेद मन्त्र की तरह याद रखना चाहिए<br /><br /> शोहरत की बुलंदी तो,पल भर का तमाशा है<br /> जिस शाख पे बैठे हो, वो टूट भी सकती है..<br />----------------Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-46020821102707588902009-06-04T03:09:00.000-07:002009-06-04T03:35:58.586-07:00गरीब की छोटी गलती भी कुफ्र- वाह रे वाह...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtynCRgw1Y0RlM4_EnmEEE_XPqLG_sQ2kTSnKbRyYkZEAlICf4hr7ESgDPyg5AHsdKldXqYekWB7eDvAONaO_vRzRs7Ssq_Fh1z-JtpDD2TgJxjz3IPkN68YCd-BOSEBTiAq8dpceOP6s/s1600-h/roads-June4.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 143px; height: 82px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtynCRgw1Y0RlM4_EnmEEE_XPqLG_sQ2kTSnKbRyYkZEAlICf4hr7ESgDPyg5AHsdKldXqYekWB7eDvAONaO_vRzRs7Ssq_Fh1z-JtpDD2TgJxjz3IPkN68YCd-BOSEBTiAq8dpceOP6s/s400/roads-June4.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343419264883916882" border="0" /></a><br /><span style="font-size:180%;">गरीब की छोटी गलती भी <span>कुफ्र-</span> वाह रे </span><span><span style="font-size:180%;">वाह...</span><br /><br /></span>इन दिनों छत्तीसगढ़ के कई शहरों में सड़क के किनारे अवैध कब्जे हटाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। अच्छा है किसी भी ग़लत काम को शरुआत में ही रोकने की पहल स्वागत योग्य है। लेकिन इसी शहर में कई सालों से बड़े बड़े शापिंग काम्प्लेक्स बन चुके है जिनमे भू-तल की पार्किंग वाली जगह पर भी दुकानें बना दी गई है और उनसे काम्प्लेक्स के मालिक मोटी आमदनी ले रहे है। जब जब इस विषय में कोई बात उठती है तो सम्बंधित अधिकारी और जन प्रतिनिधि बार बार यही कहते पाये जाते हैं कि शहर और राज्य के सभी काम्प्लेक्स कि पार्किंग <span></span> की जांच की जायेगी। लेकिन कुछ होता हुआ दिखाई नही देता। शायद गलीलियो के टेली स्कोप या कोई अन्य माईक्रो स्कोप की मदद से ही दिखाई दे। गरीबों सड़क किनारेनालियों के ऊपर लगी छोटी छोटी गुमटियां तोडी जा रही है क्योंकि उनके मामले में कोई विरोध नही करेगा। या फ़िर वे अदालत से स्टे भी नही ला सकते। अभी स्टेशन रोड पर कुछ महीने पहले पुराने कब्जे तोडे गए थे । तब कुछ दुकानदारों ने न केवल स्टे हासिल कर लिया था बल्कि निगम के अधिकारी को ग़लत साबित करने की भी कोशिश की थी।<br />लेकिन वह अधिकारी कुछ दूसरी प्रजाति का है इसलिए उसे घेरने कि कोशिश नाकाम रह गई। यहाँ यह विषय नही है कि कोई एक पक्ष ही सही होगा या दूसरा अनिवार्य रूप से ग़लत। लेकिन अफ़सोस की <span>बात </span>यही है कि गरीब कि छोटी सी गलती पर भी इतनी सख्ती से प्रतिक्रिया की जाती है, जैसे कोई कुफ्र हो गया हो।<br />यह किसी एक शहर की <span>बात </span>लगती है जरुर, लेकिन मुझे पत्रकार होने के नाते यह पूरा विश्वास है कि ऐसा ही कमोबेश हर दूसरे शहर में होता होगा।<br /><br />अपने ही एक कवि मित्र की पंक्तिया याद आती है--<br />कोई तरस रहा उजियारे को<br />कोई सूरज दाबे सोता <span>है </span>,<br />देख ले भगवन अब के दौर में<br />कैसा अनर्थ यह होता <span>है<br /><br />-----</span>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-15979030866826683522009-06-02T04:34:00.000-07:002009-06-02T04:45:07.885-07:00मतदाता को क्या अधिकार है ?मतदाता को क्या अधिकार है<br /> कल एक पूर्व मंत्री से चर्चा हो रही थी, जो अपने चालीस वर्षों के कार्यकाल में बेहद इमानदार मने जाते रहे है। जब उनसे नेताओं के भ्रष्टाचार पर बात होने लगी तो कहने लगे- अधिसंख्य मतदाताओं को क्या अधिकार है कि वे नेताओं के भ्रष्टाचार पर विरोध के स्वर उठाएं, क्योंकि उन्होंने ख़ुद दारु और मुर्गा खाकर अपना वोट बेचा है। उनकी तकलीफ वाकई जायज थी। इन दिनों छत्तीसगढ़ में भी पुराने को तोड़ना और उसकी जगह पर फ़िर नया कुछ बनाना चल रहा है। शहर को सुंदर बनाने का सांकल राज्य सरकार ने लिया है। नगर निगम ने भी रायपुर को महानगर बनाने का संकल्प ले लिया है। जब इतनी साड़ी संस्थायें एक साथ संकल्प ले चुकी है तो शायद छः महीनो में या एक साल में रायपुर की तस्वीर बदल ही जायेगी ऐसा प्रतीत होता है। अगर नही बदली तो फ़िर कुछ लोगों की तस्वीर बदल जायेगी। कम से कम उनकी बदलली हुई तस्वीर देखकर ही यह अंदाजा लगाना होगा कि शायद रायपुर की तस्वीर कि उन्ही के अनुसार बदलेगी।<br /> कई बार फिराक गोरखपुरी का एक शेर याद आता है जो गुस्से के बीच बड़ी तसल्ली देता है<br /> इन खंडहरों में बाकी हैं कुछ टूटे हुए से दीये<br /> इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात<br />आज इतना ही<br /><br />----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-18619282295570756922009-02-07T00:30:00.000-08:002009-02-07T00:36:14.634-08:00छत्तीसगढ़ी के लिए पहल और हलचल<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq9M5FKno8C0bo86Zu9zNhqaKSsg8dIvGl16_DsEnKCbRVDuluqUIzJKU8cVc5KLQqIZBfttxFEsHSeMJA_i7nByvXrZqs2Dx32L_rMoC9KwagRAxRysui4Af6jcYlkyYm4n2e5lGW8Io/s1600-h/chhattisgarh.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5299971301079898850" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 376px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq9M5FKno8C0bo86Zu9zNhqaKSsg8dIvGl16_DsEnKCbRVDuluqUIzJKU8cVc5KLQqIZBfttxFEsHSeMJA_i7nByvXrZqs2Dx32L_rMoC9KwagRAxRysui4Af6jcYlkyYm4n2e5lGW8Io/s400/chhattisgarh.bmp" border="0" /></a><br /><div><span class=""><span style="font-size:180%;">छत्तीसगढ़ी के लिए पहल और हलचल</span> </span></div><br /><div><span class=""></span></div><br /><div>छत्तीसगढ़ी बोली को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद से यहाँ के बहुत से संगठन और विशेषग्य अपनी ओर से पहल करने लगे हैं। इसी कड़ी में दो दिनों की गोष्ठी में भी रायपुर में देश भर के कुछ विद्वान आमंत्रित थे. इन सभी ने एक बात बहुत अच्छी कही की बोली के विकास का मतलब यह कदापि नहीं है की हम देश और राष्ट्र भाषा को भूल जाएँ. जब जय हिंद कहा जाता है, तो उसमे जय छत्तीसगढ़ या जय महाराष्ट्र भी अंतर्निहित रहता ही है. इसे अलग से बोलने की जरुरत नहीं होती. लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि जय महाराष्ट्र या जय असम का अर्थ यह लगाया जा रहा है, जैसे अन्य किसी राज्य को इसमें शामिल ही नहीं होने दिया जायेगा. अगर इसी को बोली का विकास कहकर प्रचारित किया जा रहा है, तो यह केवल भ्रम ही है. उसके सिवाय कुछ भी नहीं. आंचलिकता तो भारत की जान है, पहचान है. लेकिन इसका अभिप्राय यह कतई नहीं होता कि इससे अन्य क्षेत्र के प्रति दुश्मनी या अलगाव की भावना को बढावा दिया जाये. निश्चित ही आंचलिक बोलियों को समृद्ध करने के लिए हर स्तर पर प्रयास जरुरी हैं, वर्ना जिस तरह कि भाषा संस्कृति अभी हमारे देश में चल रही है, उसमे यह कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले ५० वर्षों में भारत से बहुत सी बोलियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा. गाँव से जो नयी पीढी शहर आकर अंग्रेजी पढ़ रही है, उसका अपनी स्थानीय बोली से संपर्क टूटता जा रहा है. यह संकट वाकई बहुत गंभीर है. यह सचमुच सराहनीय है कि छत्तीसगढ़ी को लेकर अभी से चिंता होने लगी है. इसी तरह के प्रयास निरंतर होते रहे तो इस बोली को भाषा के रूप में स्थापित होने में देर नहीं लगेगी. इतना जरुर है कि जो लोग इस नयी भाषा कि स्थापना में जुटे हुए हैं, उन्हें हिन्दी या अन्य भाषाओँ के प्रति भी सम्मान को न सिर्फ बताना होगा, बल्कि जन सामान्य के बीच स्थापित भी करना होगा. किसी भी परंपरा के निर्माण में जो लोग बुनियाद के स्तर पर करी करते हैं, उनकी जिम्मेदारी हमेशा बहुत ज्यादा और अहम होती है. छत्तीसगढ़ी के कर्णधारों को भी इस जिम्मेदारी को समझना होगा.------</div><br /><div><br /><br /><br /><br /><br /><br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-71554294834131237162009-02-05T22:46:00.000-08:002009-02-05T22:47:30.835-08:00किसे फ़िक्र है रायपुर के विकास की ?<span style="font-size:180%;">किसे फ़िक्र है रायपुर के विकास की ?</span><br />रायपुर नगर निगम हमेशा की तरह इस बार भी कुछ महत्पूर्बं इलाकों में तोड़-फोड़ की कार्रवाई कर रहा है. हमेशा की तरह इस बार भी कुछ व्यापारी नेता बनकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. हो सकता है की नगर निगम की इस कार्रवाई में कुछ खास इलाके पहले निशाने पर आ गए हों, लेकिन ऐसा तो पहली नज़र में प्रतीत नहीं होता की नगर निगम के आयुक्त ने निजी प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर किसी व्यापारी को परेशां करने के लिए यह कार्रवाई की हो. आश्चर्य तो यह है की तोड़-फोड़ के खिलाफ तो स्थानीय नेता अपनी राजनीति चलने के लिए हमेशा धरना प्रसर्शन करते देखे जाते हैं, लेकिन जब अवैध कब्जा हो रहा होता है, तब ये नेता शहर को सुंदर बनाने के लिए आगे नहीं आते. बल्कि देखा तो यह भी जाता है कि बहुत से नेता जान-बूझकर झुग्गी बस्तियों का निर्माण करवाते हैं, ताकि उनका वोट बैंक तैयार हो जाये. और जब नगर निगम झुग्गी बस्तियों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो यही नेता निगम के अधिकारीयों के खिलाफ राजनितिक मोर्चा खोल देते हैं. सवाल यह है, कि शहर के विकास कि जिम्मेदारी किसकी है, केवल निगम आयुक्त की या उनकी भी जो अपने को शहर का ठेकेदार मानते हैं ? निगम आयुक्त तो छः महीने या साल भर में बदल दिए जाते हैं. वैसे भी जिस अधिकारी को चापलूसी नहीं भाति या नहीं आती, उसे तो स्थानीय छुटभैये नेता टिकने कहाँ देंगे ? इसका मतलब यही हुआ कि विकास कि इस शहर में कोई नहीं करेगा. सबको केवल अपने अपने हितों कि चिंता ही बनी रहेगी. नारा देने के लिए हर नेता अखबारों को यह बयान जरूर देता रहेगा कि वह विकास का विरोधी नहीं है, किन्तु विकास किछ शर्तों के अनुसार होना चाहिए. अब ये शर्ते सभी नेताओं कि अपनी अपनी भी हो सकती हैं. इस सभी शर्तों में से सबको स्वीकार्य शर्तों को निकलने का प्रयास किया जाए तो ऐसा भी हो सकता है कि एक भी शर्त न निकले. क्योंकि सबको अपनी-अपनी जिद्द होगी और कोई दूसरा नेता या प्रतिनिधि अन्य व्यक्ति कि शर्त पर शायद ही राजी हो पायेगा. इस खींच-तान में शहर की फ़िक्र किसे रह जायेगी, यह सहज ही सोचा जा सकता है. इसलिए तब एक सर्व-सुविधायुक्त राय यही उभरेगी कि रायपुर की सुन्दरता और इसके विकास की बात को फिलहाल ठंडे बस्ते में दाल दिया जाये और परेशानी पैदा करने वाले अधिकारी का तबादला करा दिया जाये. अगर आने वाले दिनों में ऐसा वास्तव में हो जाये तो इसमें भला कैसा आश्चर्य?<br />----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-40839827108808621482009-02-02T00:46:00.000-08:002009-02-02T01:07:01.336-08:00विकलांग जोडों ने बढाया छ.ग. का मान<span class=""><span style="font-size:180%;">विकलांग जोडों ने बढाया छ.ग. का मान</span> </span><br />छत्तीसगढ़ विभिन्न कारणों से डेश में चर्चित होता रहा है. हाल के वर्षों में नक्सली समस्या ने अक्सर छत्तीसगढ़ का नाम नकारात्मक कारणों से उछाला है. लेकिन इसी दौरान कई सकारात्मक बातें भी राज्य में हुई हैं, किनकी वजह से राज्य का नाम ऊंचा हुआ है. इन्ही कुछ सकारात्मक बातों में से एक है हाल ही में हुआ विकलांग जोडों का सामूहिक विवाह कार्यक्रम. अखिल भारतीय विकलांग सेवा समिति की ओर से हुए इस आयोजन में नब्बे जोडों ने विवाह बंधन स्वीकार किया. कार्यक्रम की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह आयोजन लिम्का बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स में भी दर्ज होने जा रहा है. छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात यह भी रही कि इस आयोजन में राज्य के विभिन्न जिलों के विकलांग याओं के अलावा अन्य प्रान्तों से भी विवाह योग्य युवाओं ने रूचि दिखाई. इस आदिवासी अंचल कि पहले भी यही पहचान रही है कि यहाँ सामाजिक सदभावना है और लोग एक दूसरे की मदद दिल खोलकर करते हैं. इस आयोजन में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस तरह के कार्यक्रम न केवल लोगों को अपना जीवन सुधारने की प्रेरणा देते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी एक मिसाल का कायम करते हैं. वैसे छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार इसी तरह की एक योजना भी संचालित है, जिसमे विवाह योग्य निर्धन परिवारों के युवाओं का विवाह सरकारी खर्च पर कराया जाता है. इसलिए यह आयोजन कोई नया प्रयास नहीं है. फिर भी एक साथ नब्बे विकलांगों को जीवन बसाने के लिए प्रेरक आयोजन करना हर लिहाज से काबिले-तारीफ तो है ही. सरकार ने भी इस आयोजन के उद्देश्य को प्रोत्साहित करने के लिए सभी विवाहित जोडों को अपनी ओर से सहायता राशि देने की घोषणा की. इसके साथ-साथ घरेलु उपयोग की वस्तुएं भी इन जोडों को दी गई. जब समाज में हर तरफ नकारात्मक घटनाओं को ज्यादा महत्त्व मिल रहा हो और उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आती हो, तो ऐसे अंधेर में विकलांग विवाह समारोह जैसे प्रयासों से समाज में उन लोगों को एक उत्साह तो अवश्य मिलता है, जो कुछ बेहतर करना चाहते हैं. ऐसे प्रयासों की मुक्त-कंठ से प्रशंसा होनी चाहिए.<br /><br /><br /> ----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-90334992922072745722009-02-01T05:10:00.000-08:002009-02-01T05:57:35.161-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdQxhbWPZVfb8NDj5sgJKUI9HFR7q7D-aRIBSmmujjM1ivG0cPgIAXdN2kaenclhUbY-9EGBu3Jagbw94dMKwgpwwc3BPGOiCQHFQsID-zPK7VpsFE8Z-6qFv83mNL01b7N60ifcFfMrw/s1600-h/Rvishankr+shukl+Universiry.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5297827649490142210" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 80px; CURSOR: hand; HEIGHT: 107px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdQxhbWPZVfb8NDj5sgJKUI9HFR7q7D-aRIBSmmujjM1ivG0cPgIAXdN2kaenclhUbY-9EGBu3Jagbw94dMKwgpwwc3BPGOiCQHFQsID-zPK7VpsFE8Z-6qFv83mNL01b7N60ifcFfMrw/s400/Rvishankr+shukl+Universiry.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:180%;">छत्तीसगढ़ में स्थानीय कुलपति की खोज</span></div><br /><div><span class="">रायपुर के प्रतिष्ठित पं. रविशंकर शुक्ल विश्विद्यालय में जल्द ही नए कुलपति की नियुक्ति होने वाली है. इसके लिए राज्यपाल और विश्विद्यालयों के कुलाधिपति ने तीन विशिष्ट महानुभावों की एक समिति बनाई है, जो कुलपति के योग्य तीन उम्मीदवारों के नाम सुझायेगी. इसके पहले कि समिति की पहली बैठक हो पाए, राज्य के विभिन्न संगठनों ने स्थानीय शिक्षाविद को ही कुलपति बनाने की मांग उठाना शुरू क्र दिया है. और बहुत हद तक यह मांग जायज़ भी है. राज्य के बहुत से संगठनों का यह तर्क है कि- जब छत्तीसगढ़ के विद्वानों को राज्य से बाहर के विश्वविद्यालयों में कुलपति बनाने के लिए बहुत कम अवसर दिया गया है, तो फ़िर यहाँ के विश्वविद्यालयों में बाहर के शिक्षाविदों को भी कुलपति बनाने से पहले स्थानीय विद्वानों को वरीयता क्यों नही दी जानी चाहिए ? दूसरी तरफ़, इस मांग के ख़िलाफ़ यह तर्क भी देने वाले कम नहीं हैं कि जब शिक्षा के विकास और उच्छ शिक्षा की गुणवत्ता को सबसे ऊपर रखना हो तो क्षेत्रीयता जैसी संकीर्णता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. बी इशक यह कोई ग़लत तर्क नही है. किंतु जब तक स्थानीय के विद्वानों को अपने ही राज्ये में प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो उन्हें बाहर की संस्थाएं किस अधर पर अपनायेंगी ? अभी तक केवल एक ही बार रायपुर के एक विज्ञान प्रोफ़ेसर को भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था. लेकिन यह घटना राज्य निर्माण से पहले की है. राज्य निर्माण के बाद यह धरना भी प्रबल होकर उभरने लगी है कि अविभाजित मध्यप्रदेश के एक हिस्से के रूप में पहले ही छत्तीसगढ़ की काफी उपेक्षा हो चुकी है. इसलिए अब और उपेक्षा सहन नहीं की जायेगी. इस आधार पर सोचा जाए तो स्थानीय विद्वानों में से ही किसी को कुलपति बनाने की मांग में वजन तो है. पिछले दशक में जब राजनीतिक हितों के लिए एक के बाद एक तीन छोटे राज्य बनाए गए थे, तब भी इस फैसले से आंचलिकता को और अधिक समर्थन मिलने की बात अनेक विचारकों ने आगाह करते हुए कही थी. लेकिन अब यही बात अपने प्रखर रूप में सामने आ रही है, तो इसे खारिज करने कि कोशिशें भी कम नहीं होंगी. तब राजनीतिक लोगों के लिए यही कहना उचित होगा कि, मीठा- मीठा गप- गप और कड़वा- कड़वा थू- थू भला कैसे हो सकता है. इस बार कुलपति चयन में स्थानीयता का मुद्दा निश्चित रूप से प्रखर होने लगा है, और इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता.<br />-----</span></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-23466276866872415442009-02-01T05:08:00.000-08:002009-02-01T05:09:58.325-08:00फ़िर न हो पोराबाई जैसा मामला<span style="font-size:180%;"> फ़िर न हो पोराबाई जैसा मामला</span><br /> छत्तीसगढ़ में माध्यमिक शिक्षा मंडल वार्षिक परीक्षा कि तैयारी कर रहा है। पिछली बार जांजगीर-चाम्पा जिले में नकल के सर्वाधिक प्रकरण बने थे। इतना ही नही, जिले में पोराबाई नाम की एक छात्रा का प्रावीण्य सूची में आना ही संदिग्ध हो गया था. वह तो अच्छा हुआ की शिक्षा मंडल के अध्यक्ष ने उस छात्र की कॉपी को आदर्श के रूप में संजोकर रखने के लिए जब मंगाया तो वास्तविकता सामने आ गई. तब शिक्षा मंडल की बहुत बदनामी भी हुई थी. बाद में दसवीं की परीक्षा में भी ऐसा ही मामला उजागर हुआ था. एक ही वर्ष में दो-दो मामले सामने आने से राज्य की स्कूल परीक्षा की विश्वनीयता भी खतरे में पड़ गई थी. पिछली बार की इन कड़वी यादों को ध्यान में रखते हुए इस बार शिक्षा मंडल के अध्यक्ष ने कुछ ज्यादा ही एहतियात बरतने के आदेश दिए है. कहा भी गया है की दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है. ऐसा होना भी चाहिए. कम से कम छत्तीसगढ़ जैसे नए राज्य में तो और भी सावधानी रखने की जरुरत है. पहले जब कभी भी, कोई गडबडी या भ्रष्टाचार का मामला उजागर होता था, तो सभी आँख मूंदकर बिहार को गाली देते थे. अब पी.एस.सी से लेकर शिक्षाकर्मी की परीक्षा तक विभिन्न भारतियों में गडबडी के आरोप लगते रहते हैं. इन्ही कारणों से छत्तीसगढ़ का नाम भी भ्रस्टाचार करने वाले राज्यों की सूची में शामिल हो गया है. जाहिर है इस छवि को जितनी जल्दी तोड़ दिया जाए, उतना ही बेहतर होगा. वरना, यहाँ के ईमानदार और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की सफलता को भी शक की नजर से देखा जाएगा. यह स्थिति वाकई बेहद खतरनाक और निराशाजनक होगी. अगर इसी बात को ध्यान में रखकर शिक्षा मंडल इस बार अतिरिक्त सावधानी बारात रहा है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. अनुशासन और सख्ती की बुनियाद पर ही शिक्षा की ईमानदार और भरोसेमंद ईमारत खड़ी की जा सकती है. जो इस अधिकारी और कर्मचारी सख्ती का विरोध करें, उन्हें परीक्षा संचालित करने की व्यवस्था से अलग रख दिया जाए, लेकिन इस अनुशासन में कोई समझौता न किया जाए, तभी छत्तीसगढ़ की स्कूल शिक्षा पर पिछले साल लगा हुआ दाग धुल पायेगा.<br /><br />-----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-74117686000146617052009-02-01T04:37:00.001-08:002009-02-01T04:38:53.280-08:00विद्यार्थी पढ़ाई करें, या आन्दोलन ?<span style="font-size:180%;"> विद्यार्थी पढ़ाई करें, या आन्दोलन ?</span> <br /> इस बात से किसी को भी इनकार नही होगा कि छत्तीसगढ़ में विगत आठ वर्षों के दौरान शिक्षा का विस्तार तेजी से हुआ है. लेकिन इसी दरम्यान कई बार ऐसा भी अप्रिय अवसर आया है, जब नई संस्थाओं को मान्यता के लिए तमान तरह कि दिक्कतें पेश आई हैं. कई बार प्रायवेट संस्थाएं भी मान्यता कि शर्तों को पूरा करने में ढिलाई बरतने लगती हैं. ऐसी संस्थाओं का ज्यादा ध्यान केवल फीस के रूप में मोटी रकम बटोरने में ही रहता है. यह निश्चित रूप से विद्यार्थोयों के साथ एक तरह का चल और धोखा है, जो ऊंचे ऊंचे सपने लेकर प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला लेते हैं. रायपुर के सरकारी डेंटल कॉलेज में भी इन दिनों मान्यता बचाए रखने का संकट छाया हुआ है. कॉलेज के विद्यार्थी पढ़ाई छोड़कर धरना और आन्दोलन करने पर मजबूर हैं. आख़िर उनके महत्पूर्ण समय की किसे चिंता है ? विद्यार्थोयों का आरोप है कि उन्हें कॉलेज की मान्यता के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नही बताया जा रहा है और इसी वजह से वे पोस्ट ग्रेजुएट की कक्षा में भी दाखिला नही ले पा रहे हैं. दुखत पहलू तो यह है कि राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग से भी विद्यार्थियों को केवल आश्वासन दिया जा रहा है. डेंटल कॉलेज में पढने वाले विद्यार्थियों का आक्रोश अब बढ़ने लगा है. ऐसे में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को स्वयं पहल करके यह देखना चाहिए कि परीक्षा के इतने महत्पूर्ण समय में विद्यार्थियों के साथ किसी तरह का अहित न हो और उनका कैरियर भी सुरक्षित रहे. जब सरकारी शिक्षा संस्थाएं अपना काम-काज साफ़ और पारदर्शी रखेंगी, तभी तो प्रायवेट संस्थाओं पर सख्त निगरानी राखी जा सकेगी. वरना शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों के कैरियर से खिलवाड़ ही चलता रहेगा.<br /> ----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-81412702773411804362009-01-31T00:33:00.000-08:002009-01-31T00:59:57.479-08:00पुलिस-दोस्त की नई योजना<span style="font-size:180%;">पुलिस-दोस्त की नई योजना</span><br /> यह बात अक्सर कही जाती है कि वकील और पुलिस की न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी. लेकिन छत्तीसगढ़ में यहाँ के पुलिस विभाग के मुखिया एक नही कई बार यह कह चुके हैं कि राज्य में अपराध को तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब पुलिस, जनता को अपना मित्र माने. आखिरकार पुलिस महानिदेशक की इस योजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुर हो गई है. रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक ने आम लोगों को पुलिस मित्र बनाने के लिए उनसे अपना बायोडाटा जमा करने की अपील की है. यह पहल निश्चित रूप से अच्छी है क्योंकि इससे राजधानी में अपराध नियंत्रण में काफी हद तक मदद तो अवश्य मिलेगी. पुलिस को ज्यातर अपराध के मामलों में घटना स्थल से समय पर सूचना नही मिल पाती , क्योंकि आम लोग यही सोच लेते है कि पुलिस को बताने का मतलब है अपने लिए मुसीबत मोल लेना. पुलिस को कुछ मदद की तो बेवजह पुलिस थाने के चक्कर काटते रहने के सिवा और क्या हासिल होगा ? यही एक नकारात्मक सोच आम जनता को पुलिस के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाने से रोक देती है. कुछ साल पहले भी यही योजना आरंभ हुई थी, लेकिन तब इसे जनता का कोई सहयोग नही मिलने के कारण यह फाइल में ही दफ्न हो गई थी. अब राज्य की पुलिस अपने प्रति लोगों की इसी नकारत्मक सोच को बदलने के लिए यह अभिनव योजना शुरू करने जा रही है. इसमे शामिल होने वाले लोगों को एक पहचान पत्र दिया जाएगा. इसके आधार पर उनके नाम भी थानों में लिखे रहेंगे, ताकि अगर उनके मोहल्ले में कोई आपराधिक घटना हुई, तो सम्बंधित थाने की पुलिस अपने मित्र- व्यक्ति से आरंभिक जानकारी ले सकती है. यह पहल वास्तव में पुलिस क छवि को भी सुधारने में मददगार होगी. देखना यह है कि इस योजना के लागू होने से अपराध नियंत्रण में पुलिस को कितनी सफलता मिलती है ? <br /> ------Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-50006489332398560332009-01-28T00:17:00.000-08:002009-01-28T00:48:05.549-08:00इंदिरा बैंक घोटाला- नीयत में खोट<span style="font-size:180%;"> इंदिरा बैंक घोटाला- नीयत में खोट</span><br /><br />किसी भी बैंक घोटाले में जो लाखों या करोडों रुपये लूट लिए जाते हैं, या बैंक के अधिकारी-कर्मचारी ही रुपये गबन कर लेते हैं, उनमे अक्सर यह देखा जाता है की जांच की कार्रवाई इतनी लम्बी हो जाती है की बैंक के खातेदारों को मुआवजा मिलने में भी देर हो जाती है। बड़े राष्ट्री स्टार के बैंकों में यदि ऐसा होता है, तो उनके तंत्र और जांच प्रक्रिया में फैलाव होने का कारण समझा जा सकता है। लेकिन यदि स्थानीय स्तर के छोटे और सहकारी बैंकों में भी दो- दो साल तक गडबडी के आरोपी पकडे नहीं जाएँ, तो फिर जांच पर ही सवाल उठाना स्वाभाविक है। रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक में भी कुछ ऐसी ही स्थिति नजर आती है. तसल्ली की बात फिलहाल यही है की बैंक की अध्यक्ष और दो वर्ष पूर हुए घोटाले की एक प्रमुख आरोपी को भी आखिरकार पकड़ लिया गया है. इस घोटाले के पांच अन्य आरोपी पहले ही पकडे जा चुके हैं, जिनमे बैंक संचालक मंडल के कुछ सदस्य, बैंक मैनेजर और लेखापाल शामिल हैं. अब यह उम्मीद की जा सकती है की बैंक के सैकडों निर्दोष खातेदारों का जमा पैसा जल्द से जल्द उन्हें मिल सकेगा. राज्य सरकार ने पांच से दस हजार तक जमा राशि वालों का भुगतान कर भी दिया है, किन्तु बड़ी रकम वाले खातेदारों का भुगतान अभी बाकी है. इस बात से अलग पुलिस की प्रक्रिया और आरोपियों की गिरफ्तारी में भी एक आश्चर्यजनक लेकिन सत्य बात यह है कि बैंक की अध्यक्ष को जैसे ही गिरफ्तार किया गया सैकडों अन्य मामलो के ख़ास आरोपियों की तरह वे भी बीमार हो गयी, और उन्हें भी जेल भेजने की बजाय अस्पताल भेज दिया गया. ऐसा भारत के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हुआ है. लाख तक एक सवाल तो यही है की ऐसा आम अआरोपियों के साथ क्यों नहीं होता? क्या उन्हें जेल जाने से पहले की कुछ ख़ास बीमारियाँ नहीं हो सकती या ऐसी बीमारियाँ आम आरोपियों<br /><br />के लिए बनी ही नहीं हैं? जेल जाने से पहले बीमार पड़ने की स्थिति पर पुलिस की जांच हो या न हो, लेकिन इस पर एक शोध तो अवश्य ही होना चाहिए. कितनी विचित्र किन्तु सत्य बात है की जो लोग हजारों-लाखों लोगों के खून-पसीने की कमाई को लूटते समय आह तक नहीं करते, तब उनकी सारी संवेदनाएं तक मर जाती हैं, वही लोग पकडे जाने पर तुंरत बीमार पड़ जाते हैं. जो भी हो, इस घोटाले के शिकार लोगों को उनका डूबा हुआ पैसा जितनी जल्दी मिल जाए, उतना ही बेहतर होगा. साथ साथ दोषियों को सजा मिलने की व्यवस्था भी जल्द से जल्द होनी चाहिए.<br />----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-46219895095739654122009-01-27T02:35:00.000-08:002009-01-27T03:07:25.605-08:00कांग्रेस में निष्कासन की सख्ती<span style="font-size:180%;">कांग्रेस में निष्कासन की सख्ती</span><br /><span class=""></span><br />छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पिछले दिनों अनुशासन का डंडा इस तरह से चला कि कई जमीनी कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी इसके शिकार हो गए. इनमे एक पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह का नाम भी शामिल है. उनके साथ-साथ जोगी गुट के अन्य कई कार्यकर्त्ता भी निष्कासित लोगों में हैं. इस करवाई से यह तो स्पष्ट हो गया कि अभी भी प्रदेश प्रभारी जोगी गुट के बगावती कार्यकर्ताओं पर सख्ती करने में पीछे नहीं हैं. लोक सभा चुनाव के पहले पार्टी की लगाम कसने का यह उपक्रम किसी दूरगामी योजना के तहत उठाया गया कदम दिखाई देता है. इससे पार्टी हाईकमान संभवतः यह भी संकेत करना चाहता है की अब यदि कोई दूसरा नेता या पदाधिकारी बगावत के विषय में फिलहाल न सोचे तो बेहतर है, वर्ना उसका भी यही हश्र होगा. चुनाव के बाद जो फेरबदल हुए उनमे जोगी समर्थक योगेश तिवारी को नेता प्रतिपक्ष के चयन हेतु प्रदेश प्रभारी नारायण सामी के आगमन के समय प्रदर्शन करने के नाम पर हटा दिया गया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू की कुर्सी अभी तक सुरक्षित है. हो सकता है, इसके पीछे भी पार्टी की कोई नीति होगी. मगर इस तरह से फैसले से यह तो तय है की अभी जोगी गुट की स्थिति पहले की तुलना में कुछ कमजोर अवश्य हुई है. वैसे तो धमेंद्र साहू को भी जोगी गुट का समर्थक माना जाता है, परन्तु उनकी कुर्सी बचाकर पार्टी हाईकमान ने यह भी जताने की कोशिश की है कि किसी भी नेता को केवल हार-जीत के अनुसार हटाने की नीति नहीं अपनाई गई है. बहरहाल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को इस समय आक्सीजन की जरुरत है और इसी के लिए दिल्ली में बैठे नेता तरह -तरह के प्रयास कर रहे हैं. यदि इस सख्ती से लोकसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थितिमें सुधर जाती है, तब तो कोई विरोध का स्वर नहीं उठेगा. लेकिन यदि अपेक्षित परिणाम नहीं आए तो एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी की हवा तेज हो सकती है.<br />----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-4616167676654794562009-01-25T01:16:00.000-08:002009-01-25T01:47:55.316-08:00लखीराम : एक गौरवशाली अध्याय पर विराम<span style="font-size:180%;">लखीराम : एक गौरवशाली अध्याय पर विराम</span> <br />छत्तीसगढ़ में भाजपा के पितामह कहे जाने वाले लखीराम अग्रवाल के दुखद अवसान से प्रदेश में राजनीति के एक गौरवशाली अध्याय पर पूर्ण विराम लग गया है. जब प्रदेश में भाजपा का आगाज़ हुआ था, तब से लेकर आज पर्यंत छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थापना और उसकी प्रगति के हर अहम पड़ाव पर लखीराम के परिश्रम की छाप देखी जा सकती है. 1932 में खरसिया में जन्मे लखीराम ने छात्र जीवन से ही राजनीति और समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर अपने सारे कार्य किये. इक्कीस वर्ष की आयु में नगर पालिका के पार्षद पद का चुनाव जीतकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. बाद में उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को छोड़कर केवल पार्टी को सिंचित करने पर ध्यान कर दिया. आपातकाल में जब जनसंघ के अधिकांश बड़े नेता जेल में बंद किये जा रहे थे, तब लखीराम भी उनके साथ थे. लेकिन इसके अगले पड़ाव में लखीराम ने अपनी सांगठनिक क्षमता का परिचय इस तरह से दिया कि छात्तिस्गाह और मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार सफलता के सोपान तय करती गई. आज यदि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा दोबारा सत्ता में आ सकी है, तो इसके पीछे लखीराम जैसे समर्पित कार्यकर्त्ता का ही हाथ रहा. उन्होंने पार्टी की जो बुनियाद राखी, वह इतनी मजबूत है, कि आगे भी भाजपा की सफलता उत्तरोत्त्तर बढती ही जायेगी- इसमें किसी को संदेह नहीं होगा. लखीराम जैसे नेता और संगठन के कार्यकर्त्ता, किसी भी पार्टी जी जान होते हैं, क्योंकि इनमे सभी को जोड़कर रखने की अद्भुत शक्ति होती है. लखीराम ने यह विरासत कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेपथ्य में रहकर काम करने वाले पदाधिकारी से सीखी थी. आज उनके शरीर रूप में हमारे साथ नहीं रहने से एक शून्य तो अवश्य पैदा हुआ है, किन्तु उनके कार्य और योगदान निश्चित रूप से राजनीति में मर्यादा और समर्पण का पाठ हर नए कार्यकर्त्ता को पढाते रहेंगे, चाहे वह किसी भी दल का हो.<br />-----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-85614306450042580382009-01-24T01:02:00.000-08:002009-01-24T01:28:44.667-08:00शिक्षा के प्रति राज्यपाल की चिंता<span style="font-size:180%;">शिक्षा के प्रति राज्यपाल की चिंता</span> <br /><span class=""></span><br />छत्तीसगढ़ में शिक्षा के प्रसार पर राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से चर्चा करते हुए राज्यपाल के यह कहकर वाकई अपनी चिंता जतायी है कि प्रदेश में खुलने वाले नए विश्वविद्यालयों को शिक्षा की दुकान बनने से रोका जाना जरुरी है. उनकी सबसे बड़ी चिंता इसी बात को लेकर रही कि राज्य में बहुत से निजी विश्वविद्याला खुल तो रहे हैं, लेकिन उनके पास अपने भवन, पुस्तकालय या अन्य बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर हैं. ऐसे में वहां पढने वाले विद्यार्थियों कि शिक्षा किस तरह से हो पायेगी- यह वास्तव में एक अहम सवाल है. दरअसल राज्य में पहले भी निजी विश्वविद्यालयों की भरमार रही है. पूर्ववर्ती कांग्रेस सर्कार के कार्यकाल में तो हालत यह थी कि राज्य में एक समय 134 निजी विश्वविद्यालय पंजीकृत हो चुके थे. हलाकि इनमे से अधिकांश के पास केवल तीन या चार कमरे के ऑफिस ही थे और कक्षा के नाम पर केवल दो तीन कमरे शेड लगाकर बना दिए जाते थे. तब सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के बाद यह अहम फैसला दिया था की राज्य के सभी निजी विश्वविद्यालयों को प्रतिबंधित किया जाता है. सवाल यह है की एक निजीकरण के दौर में जब हर दूसरी सेवा पर निजी क्षेत्र के उदामियों का कब्जा हो रहा है, तो शिक्षा इससे कहाँ तक अछूती रह पाती ? अब तो प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेज भी इतने हो गए है कि पी.ई.टी. की परीक्षा लेना भी औचित्यहीन हो गया है. लेकिन सरकार पी.ई.टी. की परीक्षा लेकर हजारों रुपये इकठ्ठा करने में ज्यादा रूचि लेती है, भले उस परीक्षा के बाद सौ में दस नंबर पाने वाले विद्यार्थी को भी इंजिनीयरिंग में प्रवेश क्यों न देना पड़े. स्थिति तो यहाँ तक है पिछले साल ही राज्य के तीन से चार कॉलेज में सीट पूरी नहीं भर पायी, तो उनके प्रबंधन को बारहवी पास विद्यार्थी खोजने पड़े, ताकि कॉलेज का खर्च तो निकल सके. चाहे कोई भी संस्थान हो, जब तक शिक्षा में संस्कार और ज्ञान को प्रमुखता नहीं दी जायेगी, तब तक बाहर से कितना भी ताम- झाम कर लिया जाये, देर सबेर विद्यार्थी वहां से मुंह मोड़ ही लेगा. इस दिशा में राज्यपाल की चिंता बहुत ही सामयिक और जायज़ है, और इस पर सभी सम्बंधित विशेषज्ञों को विचार करना होगा.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-58941913422189148972009-01-22T02:32:00.000-08:002009-01-22T02:37:44.795-08:00छ.ग. को झुग्गीमुक्त बनाने की पहल<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdyovJo7wJnuZMKSwgs-npg9rb_F4R6kzYii054-vQgoZiEX6vZds-lbNcpzeXDn2bNY_dmZd7aAcKLL1Yh9rZjMd72ct3LpRbAZoFuA264Ddfvs8pvRtThzQ-OwRI0n9VnCPvtD6u7uA/s1600-h/Slums-Jhuggi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5294065340397587330" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 255px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdyovJo7wJnuZMKSwgs-npg9rb_F4R6kzYii054-vQgoZiEX6vZds-lbNcpzeXDn2bNY_dmZd7aAcKLL1Yh9rZjMd72ct3LpRbAZoFuA264Ddfvs8pvRtThzQ-OwRI0n9VnCPvtD6u7uA/s400/Slums-Jhuggi.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:180%;">छ.ग. को झुग्गीमुक्त बनाने की पहल</span> </div><br /><div>केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के चार प्रमुख शहरों को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए एक बड़ी योजना मंजूर की है. राज्य के आवास मंत्री ने हाल ही में दिल्ली में आवास मंत्रियों के सम्मलेन में यह मांग राखी थी की छत्तीसगढ़ के दस शहरों - राजनांदगांव, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगांव, रतनपुर, नैला- जांजगीर, कोंडागांव, धमतरी, अंबिकापुर और सारंगढ़ में झुग्गी उन्मूलन योजना शुरू करने की मांग की थी. लेकिन केंद्र सरकार ने फिलहाल इनमे से चार नगरों- राजनांदगांव, कवर्धा, खैरागढ़, और डोंगरगांव को ही इस योजना के लिए चुना है. इस योजना के तहत इन शहरों में 48 करोड़ रुपये की लागत से करीब तीन हज़ार मकान झुग्गी में रहने वाले परिवारों के लिए बनाये जायेंगे. इस समय छत्तीसगढ़ के तेरह शहरों में केंद्र की झुग्गी उन्मूलन योजना चल रही है. इसके अंतर्गत १७६ करोड़ रुपये की लागत से लगभग पंद्रह हज़ार मकानों का निर्माण झुग्गी में रहने वाले परिवारों के लिए किया जा रहा है. इस तरह की सभी योजनाओं का उद्देश्य निश्चित रूप से बहुत अच्छा है. लेकिन सवाल यही है कि झुग्गी में रहने वाले वर्तमान परिवारों को मकान देने लिए जो भी योजना चलेगी उससे सभी झुग्गी परिवारों को कम से कम समय में लाभ शायद ही मिल पाए. कोई भी योजना लक्ष्य से बहुत छोटे आकर में ही शुरू की काटी है और जब तक एक हिस्सा लाभ पता है, तब तक लाखो और झुग्गी बनकर तैयार हो जाती हैं. कई बार तो यह भी देखा जाता है कि जैसे ही मालूम हुआ कि कही कोई नयी योजना आने वाली है, रातों-रात कुछ मोहल्ला- छाप नेता गरीब परिवारों को नजूल कि जमें पर कब्जा करने के लिए कह देते है. फिर उन्हें झुग्गी उन्मूलन जैसी योजना का लाभ दिलाने के नाम पर अपनी राजनीती शुरू कर देते है. जब तक ऐसी छोटी प्रवृतियाँ जिन्दा रहेंगी, तब तक कोई भी कल्याणकारी योजना अपने सार्थक रूप में न तो साकार हो पायेगी, और न ही उसका लाभ सही अह्क्दारों को मिल पायेगा. लेकिन देश में ऐसी निगरानी की व्यवस्था क्या कभी बन सकेगी- यह कहना अभी मुश्किल है. </div><br /><div>----</div><br /><div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-53374590052710911962009-01-21T01:17:00.000-08:002009-01-21T01:50:22.538-08:00पोलीथिन के राष्ट्रीय-ध्वज के प्रति चिंता<span style="font-size:180%;"> पोलीथिन के राष्ट्रीय-ध्वज के प्रति चिंता</span> <br />छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस ने पोलीथिन से बने राष्ट्रीय ध्वज के प्रति एक सार्थक चिंता जतायी है। इस पर विचार करना जरुरी है. युवक कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी का कहना है कि पोलीथिन के राष्ट्रीय ध्वज को बड़ी संख्या में गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस के मौके पर बांटा और बेचा जाता है. लेकिन यह भी देखा जाता है कि समारोह ख़त्म होते ही बहुत से छोटे बच्चे या तो राष्ट्रीय ध्वज को मैदान में ही फेंक देते है, या उसे फाड़ देते है. चूँकि हर एक स्कूली बच्चे या स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चे को उनके पालक और शिक्षक यह नहीं सिखा पाते कि राष्ट्रीय ध्वज को किस तरह से रखा जाना है, इसलिए छोटे बच्चे इसे ठीक उसी तरह इस्तेमाल कर रहे है, जैसा वे स्वयं जानते है. यह वास्तव में एक गंभीर विषय है कि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा कैसे की जाए. अगर जागरूक लोग स्वयं इस दिशा में नहीं सोचेंगे, तो कौन आगे आएगा ? इस सम्बन्ध में यह सुझाव भी दिया जा सकता है कि झंडा बेचने वाले लोगों को प्रारंभिक रूप से सभी निर्देश बता दिए जाएँ. इसके अलावा किन किन परिस्थिति में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान संविधान के अनुसार माना जाता है- इस बारे में भी लोगों को जागरूक किया जाना जरुरी है कि राष्ट्रीय ध्वज को केवल एक वास्तु न समझा जाए, बल्कि इसे राष्ट्रीय प्रतीक की तरह ही स्वीकार किया जाए. तभी इसके अपमान की घटनाओं को रोका जा सकेगा. यदि अभी से स्कूलों और सार्वजानिक स्थानों पर इस विषय में लोगों को ख़ास ख़ास बातें बताई जाएँ तो इसका प्रभाव आने वाले गणतंत्र दिवस समारोह तक देखा भी जा सकता है. इसके साथ- साथ सार्वजनिक स्थानों पर यह सूचना भी लिखी जा सकती है की ध्वज के अपमान के मामले में क्या क्या कार्रवाई की जाएगी. यह वाकई एक तारीफ के लायक पहल है कि आज के युवा राजनीतिकों में से ही किसी ने यह सुझाव दिया है. अगर युवा स्वयं इस विषय को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे तो निश्चित रूप से एक सार्थक परिणाम समाने आएगा.----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-6489505784824326702009-01-20T01:31:00.000-08:002009-01-20T01:32:26.136-08:00छ.ग. में नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी<span style="font-size:180%;">छ.ग. में नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी</span> <br /><span class=""></span><br />केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपने रायपुर प्रवास के दौरान यह दो टूक शब्दों में कह दिया है कि अब नक्सलियों के ह खिलाफ निर्णायक संघर्ष कि तैयारी शुरू कर दी जाए. उनका यह आश्वासन भी राज्य सरकार को मिल गया है कि केंद्र इस लड़ाई में हर संभव मदद देने के लिए सदैव आगे आएगा. केंद्र कि हरी झंडी मिल जाने के बाद अब राज्य सरकार कि यह जिम्मेदारी ह है कि वह नक्सली समस्या के मोर्चे पर कठोर कदम उठाये. अभी तक राज्य सरकार पर यह दबाव भी रहता था कि उसके किसी भी सख्त कदम पर मानवाधिकार संगठन आवाज़ उठाने लगते थे. सलवा जुडूम को लेकर भी राज्य सरकार कि भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस ने भी चिदंबरम के आगमन पर राज्य सरकार के खिलाफ एक ज्ञापन केन्द्रीय मंत्री को दिया, किन्तु चिदंबरम ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इस दौरे में वे नक्सली समस्या को समझने के लिए ही आये है और किसी तरह कि राजनीती में नहीं उलझना चाहते. उन्होंने स्वयं इस बात को मन है कि इस समय नक्सली समस्या पूरे देश कि आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है. चिदंबरम की इन बातों से राज्य सरकार को अपना काम ठीक तरह से करने की एक अर्थ में छुट मिल गयी है. वर्ना, हाल ही में लोक सभा में चिदंबरम ने सलवा जुडूम पर अपने बयान में यह कह दिया था की सलवा जुडूम की अनिवार्यता पर वे कुछ नहीं बोलना चाहते, जबकि उनके पूर्ववर्ती गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने सलवा जुडूम की खुले तौर पर तारीफ की थी. अब राज्य के दौरे पर आकार चिदंबरम ने अपनी जानकारी को खुद ही दुरुस्त करना चाह. उनके मुताबिक दिल्ली में कुछ एन.जी.ओ. ने उन्हें यह बताया था कि सलवा जुडूम को एस.पी.ओ. चलाते हैं. चिदंबरम के राज्य के पहले दौरे में आने से यहाँ कि सरकार ने भी सुकून कि सांस ली होगी. उनके सकारत्मक रवैये से यह स्पष्ट हो गया है कि अब राज्य में नक्सली मोर्चे पर जो भी निर्णायक कार्रवाई होगी, उसे केंद्र का समर्थन हासिल रहेगा. मुख्यमंत्री रमण सिंह के लिए निश्चित रूप से यह भी एक बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक जीत कही जा सकती है, कि सलवा जुडूम को जारी रखने के सवाल पर चिदंबरम ने इसे राज्य सरकार का विषय कहकर स्वयं को अलग कर लिया. ----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-88397683244022491852009-01-17T22:55:00.000-08:002009-01-17T23:14:51.925-08:00छ.ग. कांग्रेस में आत्मचिंतन का दौर<strong> <span style="font-size:180%;"> छ.ग. कांग्रेस में आत्मचिंतन का दौर</span></strong><br /><span class=""></span><br />छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद अभी तक राज्य की कांग्रेस इकाई सदमे से बाहर नही निकल पाई है. प्रदेश कांग्रेस प्रभारी नारायण सामी चुनाव परिणाम निकलने के बाद से अब तक जितनी बार भी राज्य के दौरे पर आए हैं, उन्हें वरिष्ठ नेताओं ने शिकायतों का पुलिंदा थमाया है. ज्यादातर नेताओं की शिकायत यही रही है कि इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टी को भाजपा के नेताओं से हार नही मिली, बल्कि, कांग्रेस के ही नेताओं ने अपने उम्मीदवारों को हराया है. रायपुर क्षेत्र के चार में से एक कांग्रेस प्रत्याशी संतोष अग्रवाल ने तो सामी की बैठक में आक्रामक ढंग से अपनी नाराज़गी जताई. इसी तरह कांकेर से पार्टी उम्मीदवार गंगा पोटाई ने सबके सामने यह कहा कि उनके ख़िलाफ़ मनोज मंडावी को पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने ही जान-बूझकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा कराया था, ताकि आदिवासी वोट काटे जा सकें. कुछ अन्य नेताओं ने भी गुटबाजी को अपनी पराजय के कारण के रूप में बताया. इन सब विश्लेषणों को सुनकर नारायण सामी ने यह संकेत दिए हैं कि प्रदेश की नई कार्यकारिणी में जल्द ही कुछ परिवर्तन किए जायेंगे. हाल ही में योगेश तिवारी को प्रदेश युवक कांग्रेस के पद से अलग करते हुए आदिवासी कार्यकर्त्ता राजकुमारी दीवान को उनके स्थान पर बिठाया गया है. यह फ़ैसला भी जोगी- विरोधियों की पैरवी का एक हिस्सा मन जा सकता है. पहले विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता पद के लिए भी अजीत जोगी स्वयं को आगे मान रहे थे. लेकिन ऐन वक्त पर रविन्द्र चौबे ने ख़ुद को दावेदार बताकर उनके गणित पर पानी फेर दिया. सोनिया गाँधी ने भी चौबे को आगे बढाकर राज्य की राजनीति में अजीत जोगी की भूमिका को सीमित कर दिया. जिस तरह से प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति चल रही है, उसमे यदि कुछ और बड़े नाम हाशिये पर चले जाएँ या धकेल दिए जाएँ तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए. ऐसे माहौल में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कांग्रेस अपनी भीतरी लडाई से कैसे उबरती है.<br />----Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8798003372555900508.post-40904950826856105732009-01-16T02:34:00.001-08:002009-01-16T02:38:40.482-08:00स्कूली बच्चों को राज्यपाल का सुझाव<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQTCfNQcuG8mwNkTXNQFFv5bH800gjmKjJrrhXfegKYcEpsYogGgSWBrrE_80VQCPC_kYABYHthHfeYV48_gnKft6xvReg43zSYyi-ziptOrHhTCkLV5LHKhzTNYqhfIcUM61w0Sgvpro/s1600-h/Governor+narsimhan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5291839076684032418" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 180px; CURSOR: hand; HEIGHT: 231px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQTCfNQcuG8mwNkTXNQFFv5bH800gjmKjJrrhXfegKYcEpsYogGgSWBrrE_80VQCPC_kYABYHthHfeYV48_gnKft6xvReg43zSYyi-ziptOrHhTCkLV5LHKhzTNYqhfIcUM61w0Sgvpro/s400/Governor+narsimhan.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:180%;">स्कूली बच्चों को राज्यपाल का सुझाव</span><br />छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने यहां के स्कूली बच्चों को पेट्रोल की बचत और यातायात समस्या के समाधान की दिशा में एक उपयोगी सुझाव दिया है. उनका कहना है कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए अपने निजी वाहन या कार की बजाय, साईकल का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे न केवल पेट्रोलियम पदार्थों की बचत होगी, बल्कि यातायात की समस्या भी हल होगी और बच्चो की दुर्घटना के मामले भी कम होंगे. राज्यपाल का यह सुझाव ऐसे समय में आया है, जब आर्थिक मंदी के कारण पेट्रोल और डीजल के दाम पर भी असर पड़ रहा है. इसके साथ- साथ स्कूल जाने वाले बहुत से बच्चे छोटी उम्र में ही बड़ी बड़ी गाडी चलाने लगे हैं, जिससे सड़क दुर्घटना की आशंका भी बढ़ने लगी है. यह प्रायः हर बड़े शहर में देखा जा रहा है की जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए गाडी खरीदने में समर्थ हैं, वे यातायात की समस्या और दुर्घटना का विचार किये बिना अपने बच्चों को गाडी से ही स्कूल भेजने लगे हैं. इससे मध्यम और गरीब वर्ग के अन्य विद्यार्थी हें भावना के शिकार भी हो जाए हैं. अब, जबकि देश भर में पेट्रोलियम पदार्थो का संकट अक्सर गहराने लगता है और गाड़ियों की बढती संख्या के कारण सड़क दुर्घटनाओं की आशंका भी अधिक हो गई है, ऐसे में राज्यपाल का सुझाव हर लिहाज से काबिले-गौर है. उन्होंने इस सुझाव को अमलीजामा पहनाने के लिए विभिन्न स्कूल के प्राचार्यों से भी आग्रह किया हाकी वे अपने यहाँ पढने वाले बच्चों से इस दिशा में पहल करने को कहें. चूँकि स्कूल पढने वाले ज्यादातर बच्चे नीतिगत बातों में अपने शिक्षक या प्राचार्य की बात ही मानते हैं. इसलिए राज्यपाल का शिक्षको और प्राचार्यों से आग्रह करना बिलकुल सही है. अब यह देखना बाकी रहेगा की स्कूल के शिक्षक और प्राचार्य राज्यपाल के सुझाव प् कितनी गंभीरतापूर्वक अमल करते है ?<br />----- </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04832318248096208047noreply@blogger.com0