छत्तीसगढ को मनरेगा में देश में मिला दूसरा स्थान
अब इस सफलता को तो ‘राजनीतिक’
नहीं कह सकते....
छत्तीसगढ को महात्मा
गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को लागू करने वाले सफल राज्यों की सूची में
दूसरा स्थान मिला है. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के लिए फिर एक नई मुश्किल खडी हो
गई है. परिवर्तन यात्रा और घर-घर कांग्रेस
अभियान में इन दिनों कांग्रेस के पदाधिकारी राज्य सरकार को कोस-कोस कर गाली दे रहे
हैं. राज्य सरकार पर कोयला घोटाले सहित अनेक आरोप भी लगा रहे हैं.
लेकिन जैसे ही
कांग्रेस के नेता राज्य सरकार पर आरोपों का सिलसिला शुरू करते हैं. उन्ही की
केन्द्र सरकार, छत्तीसगढ़ में किसी न किसी केन्द्रीय योजना को लेकर रमन सरकार की
पीठ थपथपा देती है. अब इसे क्या कहा जाये. भावावेश में कुछ लोग कहेंगे- रमन सिंह
मुकद्दर के सिकंदर हैं. कुछ की दलील होगी- रमन सिंह ने केन्द्रीय मंत्रियों से निजी
जनसंपर्क बहुत अच्छा मेन्टेन किया है. कुछ कांग्रेसी नेता अपने बड़े नेताओं और मंत्रियों
के खिलाफ सीधे नाराजगी नहीं दिखा पाएंगे तो कहेंगे, राज्य सरकार ने केन्द्र को गलत
आंकड़े प्रस्तुत करके यह सम्मान हासिल किया है. पहले भी केन्द्र की कुछ और योजनाओं
पर मिली सफलता के लिए कांग्रेस की जानिब से यही तर्क दिया जा चुका है. इसलिए इस
बार भी कुछ ऎसी ही प्रतिक्रिया आने की उम्मीद है.
सवाल यह नहीं है कि
रमन सरकार ने केन्द्र की किसी योजना को अच्छे ढंग से लागू करते हुए, अपने विरोधी
दल की सरकार से कैसे वाहवाही लूट ली. बल्कि इस सवाल से भी बड़ी बात यह है कि राज्य
में इस समय विकास की योजनाओं पर सूचना तकनीकी का इस्तेमाल बखूबी किया जा रहा है. चिप्स
की मदद से इसे अंजाम दिया गया है, और इस तरह गडबडी को न्यूनतम रखने के प्रयास किये
गए हैं. शिकायत पर तुरंत कार्रवाई भी होती है. इससे निचले स्तर से मंत्रालय स्तर
तक एक एक पल की निगरानी हो पा रही है. मनरेगा में भी छत्तीसगढ को आदर्श राज्य
मानकर यू. पी.ए. सरकार ने पहले भी राष्ट्रीय विकस परिषद की बैठकों में अन्य
राज्यों के मुख्यमंत्रियों को यह सुझाव दिया था कि वे अपने यहाँ भी छत्तीसगढ के ढांचे
को लागू करें. इस बार भी छत्तीसगढ को मनरेगा में देश भर में दूसरा स्थान मिला है. यह कामयाबी पिछले पांच साल
में इस योजना के तहत किये गए सभी कार्यों के सम्मिलित मूल्यांकन के अधर पर मिली है.
यानि, बकौल केन्द्र सरकार- पिछले पांच साल में छत्तीसगढ ने मनरेगा में बेहतरीन काम
किया है. आंकड़ों की जुबानी इसे यूं साबित किया जा सकता है कि –राज्य में मनरेगा के
तहत पांच सालों में तीन लाख इक्यानबे हजार दो सौ पैतीस कार्य पूरे किये गए हैं.
खास बात यह है कि इसमें से एक लाख इक्कीस हजार कार्य आदिवासी बहुल इलाकों में किये
गए. इस आंकड़े से यह भी साबित होता है कि राज्य सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में
ही करीब चालीस प्रतिशत कार्य कराये हैं.
इस कामयाबी का सीधा
असर अभी भाजपा और कांग्रेस के चुनावी अभियान पर भी पडेगा. अब जब कांग्रेस का घर घर
अभियान चलेगा तो प्रदेश के नेता राज्य सरकार पर यह आरोप नहीं लगा पाएंगे कि छत्तीसगढ
में केन्द्र की राशि का सदुपयोग नहीं हो पाता. उधर भाजपा भी अपने चुनावी अभियान
में इस बात को गर्व से बताएगी कि राज्य में कांग्रेस के नेता जो भी आरोप लगाएं, यह
तो उनकी मजबूरी है. लेकिन सच्चाई तो यही है कि उन्ही की सरकार से राज्य को लगातार
तारीफ मिल रही है. ऐसे में प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं का भाजपा के खिलाफ अभियान
निश्चित ही कमजोर पड़ेगा. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जब छः मई से विकास
यात्रा शुरू करेंगे तो तो कांग्रेसी आरोपों
के जवान में यू. पी.ए. सरकार से मिले तारीफ़ के तमगे को जोर-शोर से दिखाएँगे. तब
कोई यह भी नहीं कह पायेगा कि यह कामयाबी ‘’राजनीतिक’’ है.
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