क्या हो नए साल का नया संकल्प ?
लीजिये, एक और नया साल आ ही गया. दर असल ३६५ दिनों के बाद केलेंडर तो एक और नया साल लेकर आएगा ही. हर साल ऐसा ही होता है. लेकिन क्या सिर्फ केलेंडर के बदलने से नए साल की औपचारिकता पूरी हो जानी चाहिए ? काश ऐसा न हो तो कितना अच्छा होगा ? इस कड़वी सच्चाई को जानने के बावजूद हममे से ज्यादातर लोग यही करते है की नए साल के आगमन पर हफ्ते- दो हफ्ते बहुत उत्साह दिखाते है की ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे. लेकिन जनवरी महीने के गुजरते तक नए सल् कसार जोश सोडावाटर के उफान की तरह शांत हो जाता है. बहुत बिरले ही ऐसे होंगे जिनको अपने नए साल के संकल्प याद रहते है. और उनमे से भी गिने-चुने ऐसे होंगे जिनमे अपने संकल्प को पूरा करने की जिद वर्ष के अंत तक कायम रहती है. सच तो यह है की दुनिया वास्तव में उन्ही गिने-चुने लोगों की बदौलत चल रही है जिन्हें न सिर्फ अपने संकल्प याद रहते है, बल्कि जो अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए शिद्दत से कोशिश भी करते हैं. हर समाज में यह ज़िम्मेदारी युवाओं पर ही होती है की वे कोई सकारात्मक परिवर्तन लायें. लेकिन युव होने का अर्थ क्या सिर्फ २० से ३० साल के उम्र का होना है? कतई नहीं. युवा होने का सही मतलब तो ऐसे लोगों से है, जिनके पास संकल्प को पूरा करने का सामर्थ्य हो, और जो विचारों से सकारात्मक हों. अगर केवल जोश और गति होगी लेकिन दिशा सही नहीं होगी तो ऐसे शारीरिक युवाओं से देश और समाज का भला नहीं होने वाला है. भारत के सन्दर्भ में तो एक विचारक का यहाँ तक कहना है कि भारत में कोई भी नौ जवान नागरिक तब तक सच्चे अर्थों में युवा कहलाने का पात्र नहीं है जब तक उसने भगत सिंह के बारे में नहीं पढ़ा हो. आज भारत को एक बार फिर ऐसे ही युवाओं कि जरुरत है को शक्ति में युवा हो और विचारों में परिपक्व हों, तभी देश को सुरक्षित मन जा सकता है, वर्ना, कोई भी बाहरी ताकत भारत को कमज़ोर करने के लिए आतंक पैदा करती रहेगी.-----
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