हैट्रिक की उम्मीद
में यात्रा पर निकले डॉ. रमन
देशाटन और तीर्थाटन
की सदियों पुरानी परम्परा वाले इस प्रदेश में एक और यात्रा शुरू हो गई है. अब यह
बात अलग है कि प्रदेश के मुखिया डॉ रमन सिंह की इस यात्रा को विकास यात्रा का नाम
दिया गया है. वैसे राजनीतिक हलकों में यूं भी माना जा रहा है कि वास्तव में यह कांग्रेस
की परिवर्तन यात्रा के जवाब में निकाली गई यात्रा है, जिसके जरिये मुख्यमंत्री
सत्ता में हैट्रिक की उम्मीद को पुख्ता करना चाहते हैं. वजह एक हो या एक से
अधिक, इतना तो साफ दिखाई देता है कि सत्ताधारी
भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच अब चुनावी जंग छिड़ चुकी है.
विकास की राजनीति का
दावा करने वाले डॉ रमन सिंह ने पिछले दिनों भाजपा कार्यसमिति की बैठक में
अपने कार्यकर्ताओं के बीच पूरे
आत्मविश्वास से कहा था कि चाहे कांग्रेस की जानिब से कोयला घोटाला, खनिज पट्टा,
एनीकट निर्माण या दीगर मामलों में कितने ही आरोप लगाए जाएँ, पार्टी को डरने की
जरुरत नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने किसी भी मामले में नियम प्रक्रिया के तहत
कि काम किया है. इन आरोपों से अलग एक बात यह भी काबिले-गौर है कि हमारे देश की
जनता बुनियादी तौर पर आस्था को विवेक से ऊपर रखती है. यहाँ किसी भी व्यक्ति को परखने
से पहले उसकी नीयत देखी जाती है. मुख्यमंत्री अक्सर यह दावा करते हैं कि वे विकास
की राजनीति करना चाहते हैं, आरोपों की नहीं. इस बार जनता की बीच जाने से पहले उनकी
सरकार ने बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा, युवाओं के लिए मुफ्त लैपटाप और
टैबलेट वितरण योजना और भारत-दर्शन योजना, धान खरीदी पर बोनस और पंचायत शिक्षाकर्मियों
के लिए नियमित शिक्षकों के समान वेतन- जैसी अनेक घोषणाएं की हैं. सरकार में रहने
का इतना लाभ तो हर दल को मिलता ही है, कि वह अपने मतदाताओं का विश्वास जीतने के
लिए उनके अनुसार कोई योजना शुरू करे और फिर उसी के सहारे सत्ता में वापसी का मार्ग
भी प्रशस्त करे. सभी सरकारें यही करती हैं. केन्द्र में यू.पी.ए. सरकार भी इसी कवायद में
जुटी हुई है.
इस नजरिये से देखा
जाए तो विकास यात्रा पर निकलना रमन सरकार की हिम्मत को भी दर्शाता है कि वे
अपनी योजनाओं और फैसलों पर जनता से प्रतिपुष्टि
(फीडबैक) प्राप्त करना चाहते हैं. किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार के लिए जनसंपर्क
अभियान, उसके कामकाज को परखने का, निहायत ही जरूरी पहलू होता है. अगर रमन सिंह यह
जानना चाहते हैं कि उनकी सरकार की विभिन्न योजनाओं और फैसलों पर प्रदेश की जनता
क्या सोचती है,तो इसमें हाय-तौबा मचाने की कोई तार्किक वजह नजर नहीं आती. ऐसा भी
नही है कि राज्य सरकार पहली बार किसी यात्रा पर निकल रही हो. हर साल गर्मी के
दिनों में ग्राम संपर्क अभियान चलाया जाता रहा है. इस बार तो नगर संपर्क अभियान भी
चलाया गया. बेशक, कांग्रेस के नेताओं ने कल ही चेताया था कि रमन सरकार को विकास
यात्रा के दौरान जनता के विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है. अगर ऐसा है, तो इसमें
भी गलत क्या है ? जनता को कोई योजना ठीक नहीं लगी होगी, तो जनता उस पर अपनी प्रतिक्रिया
देने के लिए स्वतंत्र है. और फिर रमन सिंह इसी
प्रतिक्रिया को जानने के लिए ही तो विकास यात्रा पर निकले हैं. हर जगह, हर
व्यक्ति, किसी भी सरकार की हर-एक योजना को पसंद ही करे, यह जरुरी तो नहीं. ऐसे में
डॉ रमन सिंह, चुनाव के थोडा पहले, इस विकास यात्रा के जरिये जनता का मन टटोलने कि
कोशिश कर रहे हैं. आगे जो भी प्रतिक्रिया मिलेगी, उसके अनुसार संभव है कि सरकार के
कुछ फैसलों में तब्दीली भी करनी पड़े. जनता की जरुरत के लिए ऐसा करना पड़े, तो अवश्य
किया जाना चाहिए. इसमें सरकार को किसी तरह का संकोच नहीं होना चाहिए. विकास यात्रा
के सन्दर्भ में, या यूं कहिये कि किसी नए कार्य के लिए, महात्मा गाँधी का सूत्र
वाक्य यहाँ बहुत मौजूं मालूम पड़ता है. वे
कहते थे- हर नए काम कि शुरू में उपेक्षा
होती है. फिर भी वह काम जारी रहे, तो उसकी आलोचना होती है. इसके बाद भी काम जारी
रहे, तो उसका विरोध होता है. जब इतने के बाद भी काम बंद नहीं हो, तो फिर मजबूर
होकर लोगों को उसे स्वीकार करना ही पड़ता है. दो बार चुनाव जीतने वाले डॉ रमन सिंह का संकल्प निश्चित रूप से बहुत
प्रबल होगा- इसमें कोई संदेह नहीं. शायद उनके मन में कुछ ऐसे ही भाव उमड़ रहे
होंगे, जो इन पंक्तियों में बयान होता है-
हमने ये शाम चिरागों
से सजा रखी है
शर्त लोगों ने हवाओं
से लगा रखी है
अंजाम की फ़िक्र तो
हम भी कहाँ करते हैं
हमने भी जान हथेली
पे उठा रखी है